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Mar 3, 2010

क्या हुआ जो रात का

क्या हुआ जो रात का उदास है अँधेरा |
कैसे रुक सकूँगा जबकि पास है सवेरा ||

स्वपन नाचते है आँख में घनी है नींद भी ,
आ रही है याद भूल खा गई नसीब भी |
किन्तु रही मै बना बस चलने का सहारा ||
कैसे रुक सकूँगा जब कि पास है सवेरा ||

थक गए है पाँव चूर हो गया शरीर है ,
और रोकती मुझे यह मोह की जंजीर है |
क्यों विवश बना आज ढूंढता बसेरा ||
कैसे रुक सकूँगा जब कि पास है सवेरा ||

प्रकाश बन के बुझ गई हृदय की मशाल भी ,
खो रहा हूँ लड़खड़ाती जिन्दगी के ताल भी |
मारा मरूँगा मै नहीं फिर बैठकर क्यों हारा ||
कैसे रुक सकूँगा जब कि पास है सवेरा ||

भीख मांगकर कभी मिल सके अधिकार क्या ?
प्रतिशोध ले सकी कभी आंसुओं की धार क्या ?
यज्ञ कुण्ड चाहता है बलिदान है हमारा ||
कैसे रुक सकूँगा जब कि पास है सवेरा ||
श्री उम्मीद सिंह ,खीनासर
28 दिसंबर 1958


जातीय भावनाओं का दोहन

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