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May 30, 2010

वीर श्रेष्ठ रघुनाथ सिंह मेडतिया , मारोठ-1

राजस्थान के नागौर पट्टी का गौड़ावाटी भू - भाग दीर्घ काल तक गौड़ क्षत्रियों के आधिपत्य में रहा | गौडों द्वारा शासित होने के कारण ही इस भाग का गौड़ावाटी नाम प्रसिद्ध हुआ | गौडों की काव्य-बद्ध वंशावली में वर्णन है कि चौहान सम्राट पृथ्वी राज तृतीय के शासन-काल में बंगाल की और से अच्छराज तथा बच्छराज नामक दो भाई राजस्थान में आये और पृथ्वीराज ने उन उभय गौड़ भ्राताओं को साम्भर के पास मारोठ नामक भू-भाग जागीर में दिया | उस समय मारोठ के समीपस्थ गांवों में दहिया शाखा के क्षत्रियों का अधिकार था | तब दहियों का मुखिया बिल्हण था | गौड़ भ्राताओं ने दहियों पर आक्रमण कर वह भू-खंड भी हस्तगत किया | गौड़ भ्राता साहसी तो थे , पर उदार भी थे | उनकी उदारता प्रशंसा कालांतर में भी राजस्थान में प्रचलित रही | कवि दुर्गादत्त बारहट ने अपनी "निशानी दातारमाला " रचना में दोनों गौडों की उदार वृति की उन्मुक्त भाव से सराहना की है -
अच्छा बच्छा गौड़ था अजमेर नगर का
दान दिए तिस अरबदा कव द्रव्य अमर का

चौहान साम्राज्य के पतन के बाद कोई सोलहवीं शताब्दी में कछवाहों की शेखावत शाखा का उदय हुआ | शेखावत शाखा के प्रवर्तक राव शेखा ने गौड़ावाटी पर ग्यारह बार आक्रमण कर उनकी शक्ति को समाप्तप्राय: कर दिया था | गौड़ावाटी के उत्तरी भाग पर अधिकार भी तब शेखावतों ने कर लिया था | गौड़ पर्याप्त शक्ति क्षीण हो गए थे | परन्तु मुग़ल सम्राट शाहजहाँ के समय में गौडों का पुन: त्वरा के साथ प्रभाव बढा | शाहजहाँ ने गौड़ गोपालदास के मरणोत्सर्ग और सेवा से प्रसन्न होकर उनको कछवाहों और राठौड़ों के समान जागीर तथा मनसब प्रदान कर उन्नत किया | शाहजहाँ के समय में में अजमेर , किशनगढ़ , रणथम्भोर और साम्भर के पास गौडावाटी आदि पर गौडों का अधिकार हो गया | पर गौडों का शाहजहाँ के समय जिस तीव्रता से प्रभाव बढा था उसी गति से शाहजहाँ के पतन के साथ ही गौडों का राजनैतिक पराभव भी हो गया |
बादशाह औरंगजेब ने गौडावाटी का परगना पुनलौता ग्राम के सांवलदास मेडतिया के छोटे पुत्र रघुनाथ सिंह को ११२ गावों के वतन के रूप में दे दिया | यधपि मुगलकाल में यह परगना अनेक व्यक्तियों को मिलता रहा , पर गौडों का इस पर अधिकार बना ही रहा | रघुनाथ सिंह दक्षिण में औरंगजेब के साथ था और उत्तराधिकार के उज्जैन और धोलपुर के युद्धों में भी उनके पक्ष में लड़ा था | यधपि उपरोक्त युद्धों में अनेक गौड़ योद्धा काम आये और राजनैतिक दृष्टि में भी उनकी स्थिति में पर्याप्त अंतर आया , परन्तु फिर भी रघनाथ सिंह मेडतिया अपनी स्वशक्ति से गौडों पर विजय पाने में समर्थ नहीं था | वह बगरू ठिकाने के चतरभुज राजवातों का भांजा था और उसका एक विवाह माधोमंडल के भारीजा संस्थान के लाड्खानोत उदय सिंह माधोदास के पुत्र कानसिंह के यहाँ हुआ था | उदय सिंह गौडों के साथ की लड़ाई में मारा गया था | उसका पुत्र कानसिंह शेखावत बड़ा पराक्रमी था | उसने रघनाथ सिंह , बगरू के राजवातों और अपने शेखावत भाइयों के साथ मिलकर संयुक्त शक्ति के साथ गौडों के मारोठ,पांचोता,पांचवा,लूणवा और मिठडी ठिकानों पर आक्रमण कर उनकी जागीरे छीन ली और शेखावतों की ख्यात के अनुसार - " सात बीसी गांव गोडाती का दबा लिया सो तो जंवाई सा रघुनाथ सिंह मेडतिया नै दे दिया , आपका बेटा पौता मै भारिजौ , गोरयां,डूंगरयां,दलेलपुरो,घाटवौ,खौरंडी,हुडील मै छै |"
इस कथन से इतना ही सिद्ध होता है कि गौडों की विजय में कानसिंह शेखावत का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा था | उसके नाम पर जीजोट के पास दो गिरीखण्डों के बीच के दर्रे का नाम कानजी का घाटा कहलाता है | इसी प्रकार चितावा आदि में राजवतों का हिस्सा रहा ओर शेष गौड़ावाटी पर मेड़तीयों का अधिकार हो गया | ये संवत १७१७ के आस-पास की घटनाएँ है | रघुनाथ सिंह ने संवत १७१९ वि. में चारणों को भूमि दी थी जिनकी नकलों से सिद्ध होता है कि १७१९ वि. में ही गौड़ावाटी पर उनका पूर्ण रूप से अधिकार हुआ होगा |
लेखक : ठाकुर सोभाग्य सिंह शेखावत

क्रमश:

स्वतंत्रता समर के योद्धा : राव गोपाल सिंह खरवा |
गलोबल वार्मिंग की चपेट में आयी शेखावटी की ओरगेनिक सब्जीया|



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