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Sep 26, 2010

क्या थे, क्या हो गये लेकिन अब कीस ओर अपने कदम आगे बडाये...

एक समय था जब हमारे अपने पुर्वजो के आगे लोग सीर्फ़ दीन की रोजी के लीये वो जी -हजुरी करते नही थकते थे...जो बोला जाता था वही उनके लीये अन्तीम आदेश होता था.हमारा इतीहास इतना गोरवशील है की आज उस के मुकाबले ससार का पुरा इतीहास कम नजर आता हे.हजारो सालो हमारी कोम ने इस वसुन्धरा पर अपना शासन कीया ...कोम मे जितने वीर-योधा की गीनती की जाये उतनी कम है..कोम ने जीस तरह से अपने वीरता ओर प्रराकम का काम कीया वो आज कीसी भी प्रकार से ना कम है ओर ना उसकी अब कोइ बराबरी की जाती हे...प्रताप से प्रथ्वी राज च्हवान, द्रुगा दास से जेता कुपा.., उसी तरह महीलाए भी वीरता के नाम पर अपना सब कुस भुल कर अपने प्रजा ओर समाज के मान -सम्मान मे जलती ओर धधकती आग मे कुद गये....

फ़ीर एक समय आया जब धीरे-धीरे समाज के लोग आपस मे ही एक दुसरे पर अपना साम्राज्य बडा करने की मह्त्वाकाशा ने आपस मे ही लड्ना शुरु कर दीया जीसका का नातीजा यह हुआ की उसका फ़ायदा दुसरे लोगो ने उटाया..ओर यही से राजपुतो के पतन की शरुआत हो जाती हे..पतन के कारन अगर गीनने लगे तो समय भी कम पड जायेगा..पतन की शरुआत एसी होई की उसे फ़ीर रोकने पर भी ...समाज का पतन रुक नही पाया...

राजपुत शासन के लीये ही जन्म लेते है..पर आपसी खीचतान ने उस प्रतीभा को कमजोर कर दीया ..ओर उसका नतीजा यह हुआ की वीदेशी आक्रान्ता की नजर हमारे जमीन पर पडी ओर ओर वो अपनी सेना के साथ आ धमके ..ओर एक नया युग की शरुआत हो ग्यी..मुगलो ने हमारे साम्राज्य पर हमले बोल दीये...कई द्शक तक लडाईया लडी गयी...उसमे भी मुगल सफ़ल नही हो सके..आपसी लडाई ओर मुगलो से लडाई मे समाज पर बडा असर पडा ...समाज आपस मे ही बीखर गया..फ़ीर भी शासन राजपुतो का रहा...लेकीन फ़ीर ओर नये रुप मे वीदेशी आ गये..ओर उनको राजपुतो के वीरता की पता था ईसलिए उन्होने राजपुतो से बनती कोशिश सीधा लोहा ना लेकर ..राजपुतो के कमजोरी को पक्डा ओर "फ़ुट डाळॊ ओर राज करो" की नीती को अपनाया जीसमे वो सफ़ल हो गये...ओर धीरे धीरे राजपुतो के हाथ से साम्र्ज्य जाने लगा..ओर समाज एक अलग रास्ते पर चल पडा ..विदेशी लोगो की नीती ओर काम काज से भारत मे असतोस की लहर दोड चली..जगह जगह लोगो ने विरोध ओर बहीस्कार करना शुरु कर दीया था..लेकीन उस समय तक राजपुत अपनी मोज मस्ती मे ही व्य्स्त थे..भारत के आम जन -जीवन के लोगा का राजपुतो से विशवास उथ गया था..समय ने लोगो को आगे बड्णॆ का मोका दीया ...जीस का लोगो ने भरपुर फ़ायदा लीया ओर एक नये युग के द्लीज पर खडॆ हो गये...आखीरकार अग्रेजो को भारत छॊड्णा पडा....

अग्रेजो के भारत छोड्ते ही एक अलग युग की शरुआत भारत मे हो चुकी थी..अब ना विदेशीयो का ओर ना राजपुतो का शासन रहा था..एक नई सरकार बनी जिसमे हमारे समाज का प्रभाव खत्म सा हो चुका था..सरकार को नये कानुन की जरुरत थी जिसके लिए एक नयी कमटी बनी जिसमे हमारे समाज का कोई प्रतिनीधी नही था..जो कानुन बन कर हमारे समाज के सामने आया उस मे हमारे लिये खोने के सिवाय कुछ नही था..हमे हर तरह से अधिकार वीहीन करने मे कोई कसर छॊडी...समय गुजर रहा था

तभी हमारे राजस्थान मे एक एसे कानुन ने द्स्तक दी जीसका ज्यादा ओर सीधा प्रभाव हमारे राजपुतो पर पडा..उन्की जीवन बसर करने के लीये जो भी जमीने थी वो कानुन के तह्त छीन ली गयी..उस कानुन का कई हमारे राजपुतो ने भरपुर विरोध किया...एसे कई कानुन बने जिससे समाज पर गहरा असर पडा..समाज एक शात जीवन जीने लगा लेकीन उसके शानो -शोकत मे कोई कमी नही आयी...दुसरे समाज ने भी कीसी ना कीसी रुप मे समाज पर बदनामी ओर कीचड उछालने मे कोई कमी नही रखी..सरकारी सुविधा ने लोगो ने एस नयी दीशा दी ओर वो दीन ब दीन हम से आगे नीकलने लगे

RESERVATION रुपी दैत्य ने हमारे समाज मे विकास के जो कुछ काम हो रहे थे उने भी रोक रहा था. तभी हमारे सो रहे समाज मे एक चेतना रुपी लहर दोडी..अपनो ने ईस कानुन का अधीकार लेने के लिए लोगो ने जगह-जगह सभा,धरने-प्रर्दशन कीये ओर सरकार को एक बडी सभा कर अपनी ताकत का एह्सास कराने का टाईम आ गया था..उसके लिए जयपुर मे पुरे समाज की एस विशाल सभा का आयोज्न कीया गया...पुरे राजस्थान से राजपुत समाज लाखो की ताद्त मे उम्ड पडॆ...जयपुर का हर कोना-कोना केसरिया कलर मे रग चुका था..शायद समाज के ईतिहास मे पहली बार ईतनी मात्र मे राजपुत एकजुट हुए थे...राजपुतो का जोश सातवे आसमान पर था लेकीन वहा जो कुछ घटीत हुआ उससे पुरा समाज निराशा के समुद्र मे डूबा गया..भगवान ना करे फ़ीर कभी एसा समय आये..उस दीन के लीये कीसे जिम्मेवार माने ओर कीसे नही...लेकीन ये कह सकते हे की वो हमारे ईतिहास का सबसे बडा काला दीन माना गया..जो लोग जीस जोश के साथ आए थे उतनी नीराशा ओर उदासी के साथ अपने अपने घरो को लोट गये ...ओर हमारे समाज ने एक बडा मोका गवा दीया था..उसके बाद कई कमीशन बेथे ओर सरकार ने भी खाना-पुर्ति करी ..जीस का नतीजा यह हुआ की आज तक हम उस ह्क को पा नही सके..जो लोग ईस आन्दोलन के अगुवा थे वे आज बीना मिशन पाये हुए वो कीसी ना कीसी राजनीतिक द्ल मे की शोभा बडा रहे हे...

ईन सब बातो को अब भुल जाना ही अच्छा रहेगा....आज हमारा समाज एक ऎसे मोड की द्लहीज पर हॆ..जहा से हम युवा एक समाज को नयी दीशा दे सकते हे खोई प्रतिस्टा फ़िर समाज को दीला सकते हे...नये युग की शरुआत कर सकते हे..हमे ज्यादा से ज्यादा अपनी आथिक शक्ति को बडाना होगा, हमे समाज मे EDUCATION को बडाना होगा, हमे समाज मे व्यापत कु-रितियो को मिटाने का जोरदार प्रयास करना पडॆगा, व्यपार मे हमारे समाज की भागीदारी बडानी होगी..हमारे हर प्रयास सकरात्मक होने चाहीये..तो हम फ़ीर एक नये समाज की नीव रख सकते हे ..हम फ़ीर अपना राजपुताना बना सकते हे..समाज के हर युवा का दायित्व बने की वो अपने स्तर पर ही प्रयास करे..अगर मे एक घर को मजबुत बना सकु तो समाज के लाखो युवा लाखो घरो को सश्क्त ओर मजबुत बना पायेगे..हमे उस के साथ-साथ पुरानी मानसिकता को भी त्यागना पडॆगा..ओर अन्य ओगो के दील मे भरी अपने समाज के प्रति नफ़रत को भी कम करने के प्रयास करने चाहीये...

मा भवानी की दया से हमारे खुन मे वो सब गुण हे हमे कही जा के सिखने की जरुरत नही हे बस हमे उन गुणॊ को अपने आप मे पह्चानने की जरुरत हे..ओर उन गुणॊ का सदपयोग हो..



’युवा चाहे तो बहते नदी के प्रवाह को भी बद्ल सकता हे’

जय मा भवानी..खम्मा घनी सा...(आप से मेरा विन्रम-निवेदन होगा की आप ईस लेख को सकारात्मक विचोरो के साथ समजे सा..)...
श्रवण सिंह चौहान


पाबूजी राठौड़ : जिन्होंने विवाह के आधे फेरे धरती पर व आधे फेरे स्वर्ग में लिए |
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