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Jul 7, 2011

हमारी भूलें : अपने आदर्शों को छोटा कर लेना

व्यक्ति उतनी ही ऊंची उड़ान भर सकता है जितना ऊंचा उसका लक्ष्य है | जिन व्यक्तियों के लक्ष्य उच्च होते है वे ही पुरुषार्थ का अनुसरण कर महान कार्यों में प्रवृत होते देखे गए है | अपने प्राचीन इतिहास से अनभिज्ञता के कारण आज हमने अपने आदर्शों को इतना छोटा कर लिया है , जिससे अधिक महत्वपूरण कार्यों को करने व उच्च आदर्शों तक पंहुचने की संभावना ही धूमिल हो गई है | आज जब हम हमारे संघठनो में आदर्श पुरुषों को स्मरण करते है , तो महाराणा प्रताप , दुर्गादास व छत्रपति शिवाजी जैसे वीरों के नाम हमारे सामने आते है
आज हम इतने छोटे हो गए है कि हमारी तुलना मै यह महापुरुष काफी बड़े थे | किन्तु हमारा समाज जितना उच्च रहा है , उस समाज कि दृष्टि से देखने पर यह आदर्श बहुत छोटे दिखाई देने लगते है | अपने बल व पराक्रम से समस्त भूमंडल पर शासन करने वाले राजा पृथु , जिसके नाम से इस धरती का नाम पृथ्वी पड़ा ; देवताओं को अपनी प्रजा मानकर उन से कर वसूलने वाले राजा 'रघु' ; अपनी तपस्या से संसार को विस्मित कर अदभुत शक्ति उपार्जन करने वाले विश्वामित्र ; बिना आशक्ति के समस्त राज्य कार्य का संचालन करने वाले राजा जनक ; श्री कृष्ण को प्रतिज्ञा भंग कराने वाले पितामाह भीष्म , जैसे लोग जिस समाज मै हुए हों उनके लिए आज जो आदर्श अपनाए जा रहे है , वे अत्यंत छोटे प्रतीत होते है |
हमारी यह सबसे बड़ी भूल रही है कि हमने हमारे आदर्शों को छोटा बना लिया है | जब हमारी महत्वकांक्षा विश्वामित्र व पितामह भीष्म बनने कि नहीं है तो हम उस उंचाई तक कल्पना नहीं कर सकते जंहा से उन्नत विचार धाराओं का उदगम होता है | इसी भूल के कारण हम तपस्या कि परंपरा से विमुख हो गए | तपस्या से विहीन होकर आज हम यह कल्पना भी नहीं कर सकते कि हमारे पूर्वज कभी इतने बलशाली रहे होंगे | इस प्रकार मति भ्रमित हुए हम लोग परकीय विचारधाराओं व साधना पद्दति कि और आकृष्ट होने लगे | श्रापों व तथा कथित धर्म ग्रन्थों व धर्म कि निंदा से हमको भय लगने लगा | हम यह भूल गए कि धर्म के संस्थापक हम ही थे व उसकी स्थापना का दायित्व जिस पर हो वह धर्म कभी भी भय का कारण नहीं हो सकता |
अतः आज आवश्यकता है कि हम हामारे प्राचीन ग्रन्थों को पढ़ें पूर्वजों के महिमामय कृत्यों का स्मरण करे , उनके द्वारा किये गए कार्यों का अनुसरण करें व राम तथा कृष्ण को यदि भगवान समझकर हम आदर्श बनाने का साहस न भी करें तो भी हजारों ऐसे श्रेष्ठ व तपस्वी वीर हुए है जिनको हमें आदर्श बनाना चाहिए व उनके समान क्षमताओं को अर्जित करने केलिए कठोर ताप व कर्म का आश्रय लेकर अपने जीवन को कर्मशील व कर्त्तव्य परायण बनाने कि चेष्टा करनी चाहिए |

लेखक : श्री देवीसिंह महार
क्षत्रिय चिन्तक


श्री देवीसिंह जी महार एक क्षत्रिय चिन्तक व संगठनकर्ता है आप पूर्व में पुलिस अधिकारी रह चुकें है क्षत्रियों के पतन के कारणों पर आपने गहन चिंतन किया है यहाँ प्रस्तुत है आपके द्वारा किया गया आत्म-चिंतन व क्षत्रियों द्वारा की गयी उन भूलों का जिक्र जिनके चलते क्षत्रियों का पतन हुआ | इस चिंतन और उन भूलों के बारे में क्यों चर्चा की जाय इसका उत्तर भी आपके द्वारा लिखी गयी इस श्रंखला में ही आपको मिलेगा |

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