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Nov 18, 2011

हमारी भूलें : गरीब जनता को ठुकरा देना

लोग कहते है कि इस्लामिक आक्रांताओं ने इस देश के धर्म ग्रंथों का जबरदस्त विनाश किया| इन ही आक्रांताओं पर वेदों को नष्ट करने का आरोप लगाया जाता है| वेदों की एक सौ से अधिक शाखाओं में से आज केवल सोलह शाखाएं उपलब्ध है वे भी मैक्समुलर की कृपा से| विचारणीय विषय यह कि जिन वेदी, द्विवेदी, त्रिवेदीय, चतुर्वेदियों ने वेदों को कंठस्थ याद कर कर कीर्ति अर्जित की थी, उनके रहते ये वेद कैसे नष्ट हो गए? क्योंकि आक्रांता ग्रंथों को जला सकते थे, व्यक्ति की स्मृति को शस्त्र से नष्ट नहीं किया जा सकता|

दूसरा विचारणीय विषय यह कि सभी पुराण सुरक्षित है, उनमे से न तो कोई पुराण नष्ट हुआ और न ही उसका कोई भाग| इन परिस्थितियों से यह स्पष्ट है कि वेद आक्रांताओं द्वारा नष्ट नहीं किये गए बल्कि जिनके हित साधन में वे बाधक बन गए थे, उन्होंने ही वेदों को नष्ट किया होगा|

पुराणवाद द्वारा सृजित पंडावाद के विरुद्ध जो भयानक विद्रोह हुआ, उसे शांत करने के लिए सभी श्रेष्ठ लोगों ने, जब यह व्यवस्था दी कि पुराणों का वही अंश मान्य होगा, जो वेद सम्मत है, तो पुराण-जन्य पाखण्ड को बचाने का एक मात्र तरीका यही बचा कि वेदों को ही नष्ट कर दिया जाए, ताकि पुराणों को मिथ्या साबित करने का कोई आधार ही शेष नहीं रहे|
उपरोक्त तथ्य को समझ लेने के बाद हम निकट भूतकाल के इतिहास पर नजर डालते है| इस देश पर लगातार वर्षों तक इस्लामी आक्रांताओं के आक्रमण हुए, जिनसे देश को बचाने के लिए एक एक इंच भूमि के लिए क्षत्रियों के कड़े व निरंतर संघर्ष में जो बलिदान हुए, उसकी तुलना में संसार का कोई बलिदान टिक नहीं सकता|

विचारणीय विषय यह है कि इन संघर्षों के दौर में किन लोगों ने कंधे से कंधा मिलाकर युद्धरत क्षत्रियों का साथ दिया व बाद में अमनकाल में उनके साथ क्या सलूक किया गया ?

आज जो पंडा-पूंजीपति गठबंधन अपने आपको देश और धर्म का रक्षक बतलाता है, वह उस समय भी आनंद में व् अपने व्यवसाय व जनता के शोषण में आज की तरह ही संलग्न था जबकि गरीब जनता ने देश व धर्म की आवाज को सुना था व संघर्ष क्षत्रियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर त्याग व बलिदान में बराबरी का हिस्सा लिया| यह कहना अतिशियोक्ति नहीं होगा कि कोई भी समय ऐसा नहीं रहा, जब गरीब जनता त्याग व बलिदान करने वालों के साथ सहयोग करने से पीछे हटी हो|
इस्लामिक आक्रांताओं के आक्रमण के पश्चात जैसे व्यवस्था स्थिति उत्पन्न होती गयी, वैसे वैसे बुद्दिजीवी वर्ग ने अपने पर फैलाना आरम्भ कर दिया| क्षत्रिय शिक्षा के क्षेत्र में तो पहले ही बुरी तरह पिछड़ चुके थे, अब वे साधना के क्षेत्र में भी मार्गदर्शन का अभाव अनुभव कर रहे थे| क्योंकि एक हजार वर्ष तक लगातार युद्ध करने व एक-एक युद्ध में ही घर की कई पीढ़ियों के काम आ जाने के कारण वंशानुगत साधना व आराधना पद्धति छिन्न-भिन्न हो गयी थी| इस परिस्थिति का बुद्धिजीवी वर्ग ने पूरा-पूरा लाभ उठाया व यह वर्ग यह प्रदर्शित करने में सफल हो गया कि अगर उनके बताए मार्ग पर चला जाय तो कल्याण निश्चित है|

परिणाम जो होना चाहिए था, वही हुआ| स्वयं के मार्ग से भ्रमित ज्ञान से विहीन हुआ क्षत्रिय पंडावाद के फरेब में बुरी तरह फंस गया| जगह जगह मंदिरों व मठो के निर्माण होने लगे| इन संस्थाओं के लिए भूमिदान, अन्नदान व द्रव्यदान आमतौर पर प्रचलित हो गए| क्योंकि क्षत्रिय स्वयं अपने कल्याण के मार्ग से विमुख हो चुके थे, अत: उन्हें इन पंडावादी हथकंडो में अपना कल्याण दृष्टिगोचर होने लगा| सम्यक मार्गदर्शन के अभाव में, यह मर्ज दिन प्रतिदिन व पुश्तदर –पुश्त इस तेजी से बढ़ा कि उनके पास धन का अभाव होने लगा, जिसकी पूर्ति के लिए गरीब जनता का शोषण आरम्भ हुआ| उस गरीब का शोषण जिसने हर कठिन समय में उच्चतम त्याग कर, सहयोग प्रदान किया था, स्वर्ग व मोक्ष के भूखे क्षत्रिय कृतज्ञता को भूलकर कृतध्न बन गए|

बाल्मीकीय रामायण में लिखा है “गोहत्यारे,शराबी,चोर और वृत्त भंग करने वाले पुरुष के लिए सत्य पुरुषों ने प्रायश्चित का विधान किया है| किन्तु कृतध्न के उद्धार का कोई उपाय नहीं है|”

उपकार का बदला नहीं चुकाया जा सकता| कठिन समय में मदद करने वाला उपकारी होता है| उसके प्रति कृतध्न का भाव बनाये रखना ही उसका प्रत्युतर हो सकता है, लेकिन हुआ इसके बिलकुल विपरीत| कृत्यज्ञता का भाव रखने के बजाय, शोषण प्रारंभ कर दिया गया| गरीब किसान व मजदुर के तन पर कपड़ा नहीं रहा| सेठों की दुकानें व मंदिरों के भवन स्वर्ण आभूषणों से भर गए| इस प्रकार जब यह देख लिया गया कि हम हमारी हित चिन्तक गरीब जनता से पूरी तरह बिछुड़ चुके है, तब उनके दिलों में प्रति घृणा व प्रतिशोध की भावना का बीजारोपण शैने: शैने: किया जाने लगा|

ऐसा नहीं था कि यह सब कुछ इतना चुचाप हुआ हो कि किसी को कानों कान खबर भी न लगी हो| यह सारा षड्यंत्र सरे आम चल रहा था| उधर क्षत्रिय समाज दिन प्रतिदिन पतन की और अग्रसर था| सारे कुकर्म करते हुए दान करने पर स्वर्ग व मोक्ष की गारंटी पण्डों ने उन्हें दे रखी थी| मदिरा और कामिनी में आसक्त हुए क्षत्रिय पूर्णरूप से मदहोश व अंधे हो चुके थे| समय-समय पर अनेक संतों ने उन्हें जगाने, समय गति को पहिचानने व कुमार्ग को छोड़ने का आग्रह किया था| किन्तु पाप से ग्रसित व्यक्ति कभी भी पुण्यात्मा की बातों पर ध्यान नहीं देता| क्षत्रिय समाज अपने कुमार्गों पर चलता रहा व समाज का शोषण जारी रहा|

अब विद्रोह का बिगुल खुल्लम-खुल्ला बजने लगा| वही पंडा-पूंजीपति गंठबंधन जिसने क्षत्रियों को कुमार्ग पर डालने का षड्यंत्र रचा था, इस विद्रोह का अग्रणी था| सभी प्रकार से शक्तिहीन हुए क्षत्रिय ऐसी परिस्थिति में क्या कर सकता था| जब उन्होंने अपने परम्परागत हित चिंतकों की और नजर डाली तो वे भूखी नंगी अवस्था में विरोधी खेमे में खड़े थे| व्यक्तिगत शक्ति का आभाव व समूह की शक्ति को खोकर शस्त्र डाल देने के अलावा, क्या उपलब्धि प्राप्त की जा सकती थी|

बिना संघर्ष किये सत्ता परिवर्तन संसार का एक अनोखा आश्चर्य भारतवर्ष में देखा गया| और यह उन लोगों ने कर दिखाया, जिनके पास इतनी समृद्ध विचार धारा व आराधना पद्धति थी, जिसका सारा संसार कभी लोहा मानता था|

ऐसा नहीं है कि पंडा-पूंजीपति गठबंधन के हाथों फंस कर गरीब जनता संतुष्ट हों| उसे कुछ राहत अवश्य मिली है, किन्तु वह शांति के बजाय एक अजीब बेचैनी का अनुभव कर रही है| बेचैनी का कारण अविश्वसनीयता है| गरीब, बुद्धिजीवी पर विश्वास करने का अभ्यस्त नहीं है| और ऐसे वर्ग पर विश्वास किया भी नहीं जा सकता| क्योंकि बुद्धि को नित्य प्रति नई वस्तु चाहिए| वह कभी भी किसी का परित्याग कर सकती है| ऐसी परिस्थिति में गरीब जनता को फिर से साथ लेना व उनके हृदय को जीतना कठिन कार्य नहीं है| किन्तु आज के कर्णधारों के लिए यह कार्य असंभव प्रतीत होता है|

जो कार्य वास्तव में कठिन नहीं है, उसके असम्भव दिखने के पीछे कोई न कोई कारण अवश्य निहित होना चाहिए| पाप व्यक्ति का छाया की तरह पीछाकरता है| गरीब वर्ग अपने प्रति किये हुए अन्याय को भूल जाने के लिए तैयार है| वह हमेशा अत्याचारों को भूल ही जाता है| उसका स्वाभाव है, किन्तु कर्णधारों को अपने पीछे पाप का भूत खड़ा नजर आ रहा है| वे अपने भूत से भयभीत हुए चिल्ला रहे है, यह असम्भव है वे षड्यंत्रकारी पंडा-पूंजीपति गठबंधन का चरण स्पर्श कर कल्याण की अभिलाषा रखते है, जो नितांत असंभव है|

इस व्याधि का एक मात्र इलाज यही हो सकता है कि परम्परागत साधनों व आराधना पद्धति का आश्रय लें| आत्मबल को विकसित किया जावे, जिसको देखते ही भय का भूत अपने आप पलायन कर जाएगा| तब गरीब जनता के साथ आनंद प्रेम मिलन संभव हो सकेगा|

लेखक : श्री देवीसिंह महार

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