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Mar 23, 2012

युवा सक्ति: हमारे सुखद भविष्य की नीव

                                                युवा सक्ति: हमारे सुखद भविष्य की नीव

युवा किसी भी देश की सबसे बड़ी ताकत और पूंजी होते है | ये किसी भी देश के भविष्य के  निर्धारण करता है | हर देश को , हर युग में अपनी इस धरोहर का सबसे ज्यादा ख्याल रखना होगा | ये वो ताकत है जो अगर सही राह पे रही तो निश्चित आसमान और स्वर्ग क बिच सीधी बनाने का वादा करेगी और अगर गलत राह पे गयी तो किसी भी संस्कृति और सभ्यता के अंत को सुनिश्चित करेगी |
इस लिए हे युवाओं आप सभी न सिर्फ खुद के अपितु अपने अपने कुल ,अपने धर्म ,अपने देश और अपने युग के प्रतिनिधितुवा करता है | आप सभी अपने समाज का आइना है, वर्तमान है आप , सुंदर और गौर्वंतित करने वाले भूत के  निर्माण करता है ,आप सुखद एवं निश्चित भविष्य के  निर्धारण करता है | आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणा और गौरवान्तित होने की वजेह छोड़ना भी आप का ही दाइत्व्य भी आप का ही है |
अपने धर्म अपने संस्कृति के रक्षा का भार भी हम पर ही है ,अगर हम खुद सैयमित नही है तो हम आने वाली पीढ़ी के लिए कैसी प्रेरणा छोड़ कर जायेंगे ? उन्हें जीवन की कौन सी राह दिखायेंगे ?

हे मेरे युवा मित्रो इस लिए जागो अपने सिधान्तो को टटोलो , जिस राह पे तुम चल रहे हो उसका पुनर अवलोकन करो |
स्वामी विवेकानंद जी ने एक बार कहा था ,"पवित्रता ,सुधता ,परोपकारिता इस विश्व में किसी मंदिर की निजी अधिकार नही है , अपितु यही हो तीन श्रेष्ठ गूंद है जिसने ऐसे महँ  स्त्री एवं पुरुषो का निर्माण किया है जिन्हें हम विभिन धर्मों में भिन्न नामो से पूजते है "|

इसलिए मेरे युवा मित्रो अपने चरित्र को मजबूत करो , मन को सुध करो, ह्रदय में पवित्र भावनाओ को एकत्रित करो और अपने पुरुषार्थ से अपने समाज का प्रतिनिधित्व करो|
 अपने माता-पिता का, बड़ो का ,बंधुजनो का, गुरुजनों का सदैव आदर करो ,सेवा करो ;इनसब से आशीर्वाद प्राप्त करो |
माता का स्थान सदैव ही श्रेष्ठ है , निस्वार्थ भाव से प्रेम अगर कही है तो वो माँ क ही पास है, जो हमे इस दुनिया में लेन के लिए तमाम दुःख सहती है , बच्चों को भोजन करा खुद खाली पेट भी खुद को प्रसन्न महसूस करती है ,ऐसी निस्वार्थिता भला और खा देखने को मिल सकती है |
इसी लिए स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है, "माता पिता क सामने कभी मजाक नही करना चाहिए, उनके सामने कभी क्रोध को खुद पर हावी नही होने देना चाहिए, जीवन्पर्यंत्र उनके सामने झुके रहना चाहिए ,उनके उपस्थिति में हमेसा खड़े रहना चाहिए और जब तक उनका आदेश ना हो स्थान ग्रहण नही करना चाहिए"|

हमेसा ऐसा देखा गया है की युवा समाज सेवा क नाम पर राजनीती की तरफ अग्रसर हो जाते है,"मेरा अपने सभी युवा मित्रो से एक प्रश्न है, क्या राजनीती ही समाज सेवा का तरीका है? "

अगर किसी ने मुझसे ये सवाल किया होता तो मेरा जवाब "ना " होता, जहाँ "सेवा " शब्द आ जाये वह "स्वार्थ"  कैसे टिकेगा ?

राजनीती तो अपने निजी स्वार्थ क लिए कर्यवंतित की जाने वाली नीतियों को कहा गया है ,फिर जहाँ  "निजी स्वार्थ" है वहां हम "सेवा " का अवसर कैसे खोजते है ?

अगर वास्तव में हम समाज सेवा करने का जूनून रखते है तो राजनीती की तरफ कदम क्यूँ बढा रहे है?
>हम सपने स्वार्थ और लालसाओ को भूल कर समाज क लिए क्यूँ कुछ नही करते ?
>जिनके पास खाना नही है उनके लिए खाने और रोजगार की व्यवस्था का दाईत्य्वा क्यूँ नही लेते?
>हम उन अनाथ बच्चों का सहारा क्यूँ नही बनते जिनका कोई नही ?
>अगर हम खुद निजी स्वार्थ और प्रलोभनों से दूर है तो , हम में से हर एक क्यूँ नही एक मजबूर इंसान का दाईत्य्वा खुद पर लेते ?

अगर हम सब  समाज के किसी एक व्यक्ति  का दाईत्य्वा भी लेने लगे और हम जैसे १० % लोग भी भी किसी समाज में हो गये तो निश्चित रूप से वो समाज वंदनीय हो जायेगा और वह कोई दुखी ना होगा, कोई पतित नही होगा|

क्षत्रिय का धर्म तो रक्षा और पालन करना ही है , तो क्यूँ नही हम सब एक दुसरे पर आरोप प्रत्यारोप की बजाये अपने धर्म को नही निभा रहे अगर हम ऐसा करे तो हमारा समाज अपने आप ही खुशहाल हो जायेगा |

अंत में मई अपने युवा भाइयों से निमन्लिखित पन्तियों द्वारा एल छोटा सा सन्देश देना चाहूँगा और उम्मीद करूँगा ,की हमारे युवा भाई राम और कृष्ण क पदचिन्हों पर चल कर एक विकासशील और मजबूत राष्ट्र का निर्माण करेंगे -

दूर फेकों इन मुखोटों को,
जिन्हें मुंह पर डाला है |
एक सा मुखोटा लगा,
भला किसने समाज बदल डाला है ?
रण में अगर रावण होगा ,
निश्चित राम भी आयेगा |
राम और रावन का अस्त्र भला,
एक सा कैसे हो पायेगा ?
दूर फेकों इन मुखोटों को,..........भला किसने समाज बदल डाला है ? ||



                                                                                                                              -विक्रम सिंह नागवंशी


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