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Jul 8, 2013

नागवंश के गढ़ सुअरमार में अब मिला अद्भुत शिवलिंग!

प्राचीन सुअरमार क्षेत्र में नागवंशीय राजाओं के शासनकाल का प्रमाण मिला है। यहां मिले शिवलिंग से इस प्रमाण को पुख्ता माना जा रहा है कि 8वीं और 9वीं शताब्दी में नागवंशीय राजाओं सुअरमार गढ़ क्षेत्र को केंद्र बनाकर शासन किया है।


सुअरमार राज के ग्राम सिवनी में मिले शिवलिंग की विशाल शिलाखंड की ऊंचाई 1 फुट 8 इंच और तकरीबन 3 फुट 10 इंच का व्यास है। शिवलिंग के संबंध में बताया गया है कि कालांतर में भू-क्षरण की प्रक्रिया के चलते यह धरती के ऊपर आया होगा। शिवलिंग वाले स्थान पर पिछले काफी समय से यहां के ग्रामीण और सुअरमार के तात्कालीन गोंड राजाओं ने धारणी अर्थात गौरी के रूप में पूजा की शुरुआत कर रखी है। प्राचीन शिवलिंग का पता चल जाने के बाद इस स्थान पर अब शिव-गौरी मंदिर निर्माण की योजना ने मूर्तरूप लेना शुरू किया है।

कैसे प्रकाश में आया शिवलिंग

सुअरमारगढ़ की ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व की जानकारियों को एकत्र करने के द्वारा शिक्षक विजय शर्मा को शिवलिंग के संबंध में क्षेत्र के प्रबुद्धजनों ने बताया कि यह नागवंशीय कालीन है। लोगों की जानकारियों को पुख्ता करने के लिए श्री शर्मा ने सिनी राजाबाड़ा को केंद्र बनाकर शिवलिंग से जुड़े तथ्यों को खंगालने का काम शुरू किया तो पाया कि नागवंशीय समाज की परंपरा के अनुसार महल की पूर्व दिशा की ओर ही शिवलिंग की स्थापना की गई है। पास में ही मां गौरी की पूजा लोग वर्षो से करते आ रहे हैं। चरवाहों ने भी इस दिशा में काफी मदद किया।

नागवंशियों का गढ़ में इतिहास

शिक्षक विजय शर्मा की पड़ताल से एकत्र तथ्यों के अनुसार काफी लंबे समय तक सुअरमार के गढ़ क्षेत्र में नागवंशीय राजाओं ने शासन किया है। यहां उनकी राजधानी होने का भी प्रमाण बताया जाता है।

मानता की परंपरा से जुड़ी आस्था

शिवलिंग की प्रमाणिकता का एक और केंद्र यहां लोगों के द्वारा की जा जाने वाली मान्यता और उसके पूरे होने से भी जुड़ा हुआ है। ग्रामीण विश्वास करते हैं कि शिवजी की मन्नत को पूरा करते हैं।

परंपराओं में सुअरमार के नागवंशीय

18वीं शताब्दी में सुअरमार में सूर्यवंशी राजा ठाकुर शोभराम सिंह ने यहां पर धारणी देवी के नाम से पूजा शुरू की और यह परंपरा आज र्पयत जारी है। स्थल निरीक्षण से इस बात का भी पता चला है कि लिंग क्षेत्र से एक गुप्त द्वार का निर्माण कराया गया था, जो राज्य के सीमा क्षेत्र को निकलता है। कालांतर में इस गुफा के धंस जाने के कारण इसके करीब के सभी पेड़ अभी भी तिरछे हैं। पेड़ों की जड़ें भी सीधी नहीं हैं।

इससे इस बात के ठोस प्रमाण हासिल किए गए कि भू-क्षरण के पहले नागवंशीय काल के सभी अवशेष मौजूद रहे हैं और खुदाई के दौरान यह सब बाहर आ रहे हैं। सुअरमार गढ़ को छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल के नक्शे में शामिल कर लिए जाने के बाद से इस क्षेत्र के लोगों में काफी उत्सुकता है। ग्रामीणों का कहना है कि पर्यटन मंडल के इस सुकृत्य से क्षेत्र को एकबार फिर नई पहचान मिलने जा रही है। जिले के पर्यटन कारीडोर को भी बढ़ावा मिला है।

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