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Nov 8, 2013

चुनाव हराने की क्षमता विकसित करे राजपूत समाज


राजस्थान में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में भाजपा द्वारा १७६ सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा से प्रदेश के शेखावाटी आँचल सहित कई क्षेत्रों में राजपूत युवाओं में भाजपा के खिलाफ रोष है| राजपूत युवाओं का मानना है कि राजपूत भाजपा के पारम्परिक वोट बैंक होने के नाते अब पार्टी की यह सोच बन गई है कि – “राजपूत मतदाता तो उसके है ही सो अपना जनाधार बढाने हेतु अन्य जातियों खासकर भाजपा की अब तक धुर विरोधी रही जाट जाति को जोड़ा जाय|” और इसी सोच के तहत भाजपा द्वारा जारी सूची में जाट उम्मीदवारों की संख्या अपेक्षा के विपरीत ज्यादा है| साथ ही राजपूत जाति का पारम्परिक रूप से कांग्रेसी विरोधी होने व आम राजपूत के मन में कांग्रेस के प्रति घृणा के चलते भाजपा की सोच बन गयी है कि राजपूत समाज को महत्त्व दिया जाय या नहीं उसका उनके मतदान पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि राजपूतों की कांग्रेस से घृणा के चलते भाजपा को वोट देने की मज़बूरी है|

और पार्टी की यह सोच उसके द्वारा जारी उम्मीदवारों की सूची देखकर आसानी से देखी समझी जा सकती| साथ ही भाजपा के खिलाफ इसको लेकर राजपूत युवाओं द्वारा व्यक्त रोष भी सोशियल साइट्स पर प्रत्यक्ष देखा सकता है, यही नहीं समाज को उचित प्रतिनिधित्त्व ना मिलने से नाराज कई राजपूत बागी होकर भाजपा को हराने हेतु निर्दलीय या बसपा जैसे अन्य दलों की टिकट पर चुनाव मैदान में ताल ठोक रहे है जो निश्चित ही भाजपा के लिये अशुभ होगा|

बंधुओ जब तक समाज किसी भी राजनैतिक पार्टी का मानसिक गुलाम बनकर बिना अपना फायदा देखे अंधा होकर समर्थन करता रहेगा, तब तक हर एक राजनैतिक दल आपके साथ ऐसा ही व्यवहार करता रहेगा| आज हम किसी विधानसभा क्षेत्र में जीतने या जीतने की स्थिति में है यह प्रश्न विचारणीय नहीं है पर हाँ यदि हम किसी भी सीट पर हराने की क्षमता रखते है तो हर दल हमारे आगे-पीछे भागेगा| समाज बंधुओं से अक्सर सुनने को मिलता है कि चुनाव जीतने के बाद हमारे अपने स्वजातिय नेता भी हमें नहीं पूछते और ना ही हमारा कोई काम करते, इनके इलाज का भी यही एक ख़ास तरीका है –“चुनाव हराने की क्षमता” आप जिसको भी समर्थन देकर चुनाव जीता रहे है, उसके मन में यह डर जरुर बैठा होना चाहिये कि- यदि आपको व समाज को तवज्जो नहीं दी तो अगले चुनाव में आप उसे हरा देंगे| यही हराने का डर हर नेता को आपको तवज्जो देने को मजबूर कर देगा|

अत: बंधुओं हर उस सीट पर जहाँ हमारे २०००० के लगभग भी वोट है तो वे किसी भी उम्मीदवार को हराने या जीतने के लिए काफी है| यदि इस हराने की क्षमता के असर का आपको पता ही लगाना है तो इस बार की भाजपा से अजमेर की सूची पर नजर डाल लीजिये| पिछले चुनावों में रावत राजपूत समाज को भाजपा ने उचित प्रतिनिधित्त्व नहीं दिया तो सोशियल साइट्स पर हो रही चर्चाओं के अनुसार रावत समाज ने भाजपा को तीन सीटों पर हराया और उसका परिणाम यह हुआ कि इस बार अजमेर में रावत समाज के व्यक्ति को टिकट दे दी गई|

इसी तरह राजपूतों के वोटों से चुनाव जीत भाजपा सरकार में मंत्री बने एक नेता जी का उदाहरण भी देख लीजिये – “इन नेता जी ने मंत्री बनने के बाद राजपूतों को भाजपा का मानसिक गुलाम समझ उनका कोई काम नहीं किया, अपने क्षेत्र में हुए एक हत्याकांड में निर्दोष राजपूत युवकों को बचाने के विपरीत मंत्री जी सवाई मानसिंह अस्पताल में विरोधियों से मिलने गये| यही नहीं क्षेत्र के लोगों के अनुसार पिछले विधानसभा कार्यकाल की बजाय मंत्री जी के कार्यकाल के दौरान राजपूत युवकों को फर्जी मुकदमों में ज्यादा फंसाया गया और इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप जब पिछले चुनाव में समाज द्वारा एक युवा को मंत्री जी के खिलाफ उन्हें चुनाव हराने के बाद राजपूत समाज के प्रति पूर्व मंत्री जी के व्यवहार में अप्रत्यक्ष बदलाव आया| सूत्रों के अनुसार इस चुनाव से पहले ही उपरोक्त नेताजी ने कुछ राजपूत युवकों को अपने क्षेत्रों में किसी भी बहाने कार्यक्रम आयोजित कर क्षेत्र में पैठ बनाने हेतु गुप्त आर्थिक सहायता तक दी ताकि अपने क्षेत्र में पैठ बना ये राजपूत युवक चुनाव में उसे फायदा पह्नुंचा सके, यही नहीं प्रदेश के एक अग्रणी सामाजिक संगठन के चुनिंदा शीर्ष लोगों का भी वह जमकर तुष्टिकरण व पगचंपी करने में लगे है ताकि उनके द्वारा समाज के वोट मिल सके और जीत सुनिश्चित हो सके| कुचामन में एक सामाजिक संगठन द्वारा स्व.आयुवानसिंह जी के नाम पर बने भवन के उदघाटन समारोह पर भी भवन निर्माण के पीछे भी इन्हीं नेताजी की गुप्त आर्थिक सहायता की समाज में यह बात उछली थी जो सोशियल साइट्स पर कई दिनों छाई रही, यही नहीं आयुवानसिंह जी के गांव व परिवाजनों ने भी उस कार्यक्रम पर सवाल उठाये थे और निर्माणकर्ता संगठन पर उक्त नेताजी के साथ गठबंधन करने के आरोप लगे थे, जिसके बाद उस कार्यक्रम से उक्त नेताजी को दूर रखा गया|

कुचामन के सामाजिक भवन में उक्त नेताजी की आर्थिक सहायता थी या नहीं थी, और थी तो वह गलत थी या सही थी, मैं इस विवाद में नहीं पड़ रहा, मेरा यहाँ इस बात का उल्लेख करने का तात्पर्य सिर्फ यही है कि यदि यह आरोप या इस मामले में थोड़ी भी सच्चाई है तो यह सिर्फ उसी “चुनाव हराने वाली ताकत” की महिमा को दर्शाता है| कि जो व्यक्ति मंत्री बनने के बाद राजपूत समाज को पूछता नहीं था उसे हराने के बाद वह समाज के हर व्यक्ति के आगे पीछे हाथ जोड़े घूम रहा है| यही है असली ताकत| अभी हाल में चुनाव के दौरान समाज द्वारा ताकत दिखाने का एक मामला अलवर में नजर आया, अलवर जिले के युवा नेता जिन्हें राज्य सरकार में मंत्री का दर्जा प्राप्त है स्थानीय लोगों के अनुसार कभी किसी सामाजिक कार्यक्रम में बुलाने पर बहुत कम आते है, जब उन्हें पता चला कि एक कार्यक्रम में समाज के लोग समाज का उम्मीदवार खड़ा कर रहे है तो दौड़े दौड़े सभा में आये और अपनी स्थिति स्पष्ट की, यही नहीं अलवर जिले में किसी अन्य राजपूत को राजनीति में आगे बढ़ने से रोकने की मंशा पाले अलवर के पूर्व महाराजा जितेन्द्र सिंह को जब समाज द्वारा संगठित हो कार्यवाही करने का पता चला तो वे रातों रात दिल्ली से अलवर दौड़े आये और सुबह ही समाज के लोगों को बुलाकर समाज के लोगों के काम नहीं होने पर अपनी मजबूरियां गिनाई व सफाई दी ताकि विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी की अलवर में हार ना हो| जबकि यही पूर्व महाराजा किसी आम राजपूत से ना तो मिलते है ना ही आम राजपूत उनके महलों में घुस सकता|

अत: बंधुओ ऊपर लिखी सलाह “चुनाव हराने की क्षमता” विकसित करें, लोकतंत्र का सबसे बड़ा मर्म “सिर गिनवाने” का महत्त्व समझे और संगठित होकर मतदान कर अपने जातीय मतों की ताकत का राजनैतिक दलों को अहसास करायें| तभी आप उस लोकतंत्र में सिर ऊँचा कर स्वाभिमान से जी सकते है|

आज जब टिकट जातीय आधार पर दिए जाते है, चुनाव के बाद सरकार में मंत्री जातीय आधार पर संतुलन साधते हुए बनाये जाते है, सरकारी नौकरियां जातीय आधार पर बांटी जा रही है, विभिन्न सरकारी निर्णय जातियों के तुष्टिकरण के आधार पर लिए जाते है, तो फिर आप जातीय आधार पर संगठित हो हर क्षेत्र में अपना हित क्यों नहीं देखते ??

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