वो कौम न मिटने पायेगी
ठोकर लगने पर हर बार , उठती जाएगी |
युग युग से लगे है यहाँ पर देवों के दरबार
इस आँगन में राम थे खेले , खेले कृष्ण कुमार , झूम उठे अवतार ||
गंगा को धरती पर लाने भागीरथ थे आये
ध्रुव की निष्ठा देख के भगवन पैदल दौड़े आये , साधक आते जायें ||
विपदा में जो देवों की थी अभयदायिनी त्राता ही
चंडी जिनकी कुलदेवी हो बल तो उसमे आता ही , जय दुर्गा माता की ||
बैरी से बदला लेने जो हंस हंस शीश चढाते
शीश कटे धड से अलबेले बढ़-बढ़ दांव लगाते , मरकर जीते जाते |
जिनके कुल की कुल ललनाएं कुल का मान बढाती
अपने कुल की लाज बचाने लपटों में जल जाती , यश अपयश समझाती ||
मरण को मंगलमय अवसर गिन विधि को हाथ दिखाने
कर केसरिया पिए कसूँबा जाते धूम मचाने , मौत को पाठ पढ़ाने ||
कितने मंदिर कितने तीरथ देते यही गवाही
गठजोड़ों को काट चले थे बजती रही शहनाई , सतियाँ स्वर्ग सिधाई ||
कष्टों में जिस कौम के बन्दे जंगल -जंगल छानेंगे
भोग एश्वर्य आदि की मनुहारें ना मानेंगे , घर-घर दीप जलाएंगे ||
स्व. श्री तन सिंह जी द्वारा रचित :७ जून १९६०
सुख और स्वातन्त्र्य
कसर नही है स्याणै मै