जिधर से भी गुजरता हूँ मुझे आवाज है आती |
यहाँ गुलशन गए मुरझा मगर खुसबू नहीं जाती ||
पुकारो न सोई घाटियाँ , यहाँ पर वीर सोते है , यहाँ .....
कैसे रोकलूं आंसू यहाँ इतिहास रोते है ,
यहाँ इतिहास रोते है |
जहाँ पर भी नजर डालूं दबी इक टीस तडफती
जलो ए दीप प्राणों के यहाँ परवाने जलते है , यहाँ ....
न जाने कितने दिल यहाँ अब भी मचलते है ,
यहाँ अब भी मचलते है |
कोई धड़कन अभी तक रक्त से साँसों को नहलाती || जिधर....
जलाने को काफी है यहाँ का एक भी शोला , यहाँ ....
हर पत्थर किसी की याद करके के पड़ गया पीला,
देख लो पड़ गया पीला |
यहाँ सुन एक भी धिक्कार मुझे तो कंपकंपी आती !! जिधर ...
मेरे तक़दीर खुश हो तो लुटादे अपनी मस्ती , लुटादे ......
नहीं मालूम बहारें फिर मिटाने आये हस्ती को ,
मिटाने आये मस्ती को |
जब तक तू नहीं आये , किसे रंगरेलियां भाती || जिधर ....
श्री उम्मेद सिंह, खिदासर
२३ अप्रेल १९५९
सुख और स्वातंत्र्य -4