क्षत्रिय कुल में जन्म दिया तो ,क्षत्रिय के हित में जीवन बिताऊं |
धर्म के कंटकाकीर्ण मग पर ,धीरज से में कदम बढ़ाऊँ ||
भरे हलाहल है ये विष के प्याले ,दिल में है दुवेष के हाय फफोले |
जातीय गगन में चंद्र सा बन प्रभु, शीतल चांदनी में छिटकाऊँ ||
विचारानुकुल आचार बनाकर ,वास्तविक भक्ति से तुम्हे रिझाऊँ || १ ||
उच्च सिंहासन न मुझे बताना,स्वर्ग का चाहे न द्वार दिखाना |
जाति की फुलवारी में पुष्प बनाना , ताकि में सोरभ से जग को रिझाऊँ ||
डाली से तोडा भी जाऊँ तो भगवन, तेरा ही नेवेधे बन चरणों में आऊं || २ ||
साधन की कमी है कार्य कठिन है , मार्ग में माया के अनगिनत विध्न है |
बाधाओं दुविधावों के बंधन को तोड़के , सेवा के मार्ग में जीवन बिछाऊँ ||
पतों से फूलों से नदियों की कल कल से ,गुंजित हो जीवन का संदेश सुनाऊँ || ३ ||
पु. स्व. श्री तन सिंह जी द्वारा रचित