मल्लिनाथ के अनुज जैत्रमल्ल और विरमदेव थे | राव विरमदेव के पुत्र राव चूंडा की संतति में जोधपुर ,बीकानेर,किशनगढ़ ,रतलाम आदि के राजा थे और मल्लिनाथ के महेचा अथवा बाहड़मेरा राठौड़ है | इस प्रकार जोधपुर ,बीकानेर,नारेशादी तथा अन्य राठौड़ ठिकानेदारों में महेचा टिकाई (बड़े)है और राजस्थान में अंग्रेजों के प्रभाव के बाद तक भी वे अपनी स्वतंत्रता का उपभोग करते रहे है | जोधपुर के महाराजा मान सिंह के समय उनके नाथ सम्प्रदाय गुरु भीमनाथ ,लाडूनाथ , महाराज कुमार छत्र सिंह आदि की उत्पथगामिता के कारण मारवाड़ में राजनैतिक धडाबंदी बंद गई थी | इस अवसर का फायदा उठाकर अंग्रेजों ने महाराजा को संधि कर अंग्रेजों का शासन मनवाने के लिए बाध्य किया और वि.स.१८९१ में कर्नल सदरलैंड ने अपने प्रतिनिधि स्वरूप मि.लाडलो को जोधपुर में रख दिया |
मि.लडलो ने नाथों के उपद्रव और महाराजा तथा उनके सामंतो के विग्रह विरोध को शांत तथा दमित कर अंग्रेज सत्ता का प्रभाव जमाने का प्रयत्न किया | बाड़मेर में महेचा राठौड़ सदा से ही अपनी स्वतंत्र सत्ता का उपभोग करते रहे थे वे कभी जोधपुर राज्य से दब जाते और फिर अवसर आने पर स्वतंत्र हो जाते | अंग्रेजों का मारवाड़ राज्य पर प्रभाव बढ़ता देखकर स्वतंत्रता प्रेमी मालानी के योद्धा उत्तेजित हो उठे और अंग्रेजों के विरुद्ध दावे मारने लगे | अंग्रेजों ने संवत १८९१ वि.में मालानी पर सैनिक चढाई बोल दी | बाहड़मेरों ने भी ठाकुर श्याम सिंह चौहटन के नेतृत्व में युद्ध की रणभेरी बजाई | अपनी ढालें , भाले , सांगे और तलवारों की धारें तीक्षण की | कवि कहता है -
गढ़ भरुजां तिलंग रचै जंग गोरा, चुरै गिर गढ़ तोप चलाय |
माहव किण पातक सूं मेली , बाड़मेर पर इसी बलाय ||
दुर्गों की बुर्जों पर तोपों के प्रहार हो रहे है और पार्वत्य दुर्ग की दीवारें टूट -टूट कर गिर रही है | यह किस पाप का फल जो बाड़मेर पर ऐसी आपत्ति आई |
बाड़मेर के दुर्ग पर आधिपत्य कर ब्रिटिश सेना ने चौहटन पर प्रयाण किया | ब्रिटिश अश्वारोही आक-फोग सभी के क्षूपों को रोंद्ती , पृथ्वी को मच्कोले खवाती , कुप वापिकाओं के जल स्रोतों को सुखाती , चौहटन पहुंची | ठाकुर श्याम सिंह रण मद की छक में छका हुआ अपने शत्रुओं को दक्षिण दिशा के दिग्पाल की पुरी का पाहुना बनाने के समान उद्दत था | अंग्रेज सेनानायक ने श्याम सिंह से युद्ध न कर आत्मसमर्पण करने के लिए सन्देश भेजा , पर श्याम सिंह तो देश के शत्रु ,राष्ट्रीयता के अपहरणकर्ता और स्वतंत्रता के विरोधी अंग्रेजों से रणभूमि में दो दो हाथ करने के लिए अवसर ही खोजता फिर रहा था | राष्ट्रीय कवि बाँकीदास आशिया के काव्य में व्यक्त अंग्रेज सेनानायक और ठाकुर श्याम सिंह का शोर्यपूर्ण प्रश्न उत्तर सुनिए -
अंग्रेज बोलियौ तेज उफ़नै,सिर नम झोड़ में रौपै सिरदार |
हिन्दू आवध छोड़ हमै साहब नख ,सुणियो विण कहे बिना विचार ||
धरा न झलै लड़वां धारवां , स्याम कहै किम नांखुं सांग |
पूंजूँ खाग घनै परमेसर , उठै जाग खाग मझ आग ||
कळहण फाटा बाक कायरां , वीर हाक बज चहुँ वलाँ ||
छळ दळ कराबीण कै छूटी, कै पिस्तोला पथर कलाँ ||
अंग्रेज सेनापति ने आक्रोश में उत्तेजित होकर कहा- अरे सरदार ! युद्ध मत ठान | आत्मसमर्पण कर अपने जीवन की रक्षा कर | हे हिन्दू योद्धा ,अपने आयुध साहब के सामने रख दे | तू सुन तो सही ,आगे पीछे भले बुरे , हानि -लाभ का बिना विचार किये व्यर्थ मरने के लिए हठ ठान रहा है |
वीरवर श्याम सिंह ने मृत्यु की उपेक्षा करते हुए कहा - यदि मरण भय से आत्मसमपर्ण करूँ तो यह क्षमाशील पृथ्वी भार झेलना त्याग देगी ,तब फिर मै शस्त्र सुपुर्द कैसे करूँ | तलवार और परमेश्वर का मैं समान रूप से आराधक हूँ | अत: शस्त्र त्याग जीवन की भिक्षा याचना के लिए तो मैंने शस्त्र उठाये ही नहीं | बैरियों के सिरछेदन के लिए मैं अपने हाथ में तलवार रखता हूँ |
कायरों के मुंह फटे से रह गए | चारों और से मारो काटो की आवाजें गूंजने लगी | कराबीने पत्थर कलाये और पिस्तोलों से गोले गोलियां गूंजने लगी | कायरों के कलेजे कांप गए | वीर नाद से धरा आकाश में कोहराम मच गया | क्षण मात्र में देखते देखते ही नर मुंडों के पुंज (ढेर) लग गए | मरुस्थली में रक्त की सरिता उमड़ने लगी |
मालानी प्रदेश को कीर्ति रूपी जल से सींचने वाला वीर श्याम सिंह अपने देश की स्वंत्रता के लिए जूझने लगा | अपने प्रतापी पूर्वज रावल मल्लिनाथ ,रावल जगमाल ,रावल हापा की कीर्तिगाथा को स्मरण कर अंग्रेज सेना पर टूट पड़ा | उसके पदाति साथियों ने जय मल्लिनाथ ,जय दुर्गे के विजय घोषों से शत्रु सेना को विचलित कर दिया | इस पर कवि बाँकीदास ने कहा -
हठवादी नाहर होफरिया , सादी जिसडा साथ सिपाह |
मेर वही मंड बाहड़मेरे , गोरां सूं रचियौ गजशाह ||
केवी मार उजलौ किधौ ,अनड़ चौहटण आड़े आंक |
घण रीझवण पलटणदार घेरिया , सेरावत न मानी सांक ||
सोमा जिम तलवार संमाहे , जोस घनै बाहै कर जंग |
मरण हरख रजवट मजबुतां , राजपूतां त्यां दीजै रंग ||
अणियां भंमर रोप पग उंडा , रचियो समहर अमर हुओ |
आंट निभाह उतन आपानै , मालाणे जळ चाढ़ मुओ ||
उस हठीले वीर श्यामसिंह ने सादी जैसे साहसी साथियों को अपने संग लेकर सिंह की तरह दहाड़ते हुए आक्रमण किया और सुमेर गिरि शिखिर की भांति अडिग बाहड़मेरो ने गोरों से भयानक युद्ध छेड़ा | उस वीर श्रेष्ट शेरसिंह तनय श्यामसिंह ने अंग्रेजों की तोपों , तमंचो से सनद्ध सेना का तनिक भी भय नहीं माना | शत्रुओं का संहार कर उसने बाहड़मेरा राठौड़ खांप को कीर्तित किया तथा चौहटन वालों की वीरता का प्रतीक बन गया | अंग्रेजों की पलटनो को चारों तरफ से घेर कर अपने प्रतापी पूर्वज सोमा की भांति तलवार उठाकर अत्यंत ही उत्साह के साथ भयानक जंग लड़ा | मरणो उत्साही ऐसे क्षत्रिय सपूतों को रंग है जो मातृभूमि की गौरव रक्षा के लिए अपने प्राणों को तृण तुल्य मानते है |
सेना रूपी दुल्हिन का दूल्हा वह श्यामसिंह रणाराण में दृढ़ता पूर्वक अपने पैरों को स्थिर कर युद्ध करने लगा और अंत में अपने प्यारे वतन की आजादी की टेक का निर्वहन करता हुआ रण शय्या पर सो गया | उस वीर ने मालानी प्रदेश को यश प्रदान कर अमरों की नगरी के पथ का अनुगमन किया |
ठाकुर श्याम सिंह ने अपने पूर्वजों की स्वातंत्र्य भावना और आत्मसम्मान ,आत्म त्याग का पाठ पढ़ा था | इसलिए उस वीर ने जीते जी मालानी प्रदेश पर अंग्रेज सत्ता का आधिपत्य नहीं होने दिया | मातृभूमि के लिए अपने प्राणों का बलिदान का देने वाले ऐसे ही सपूतों के बल पर ही देश स्वतंत्र रहते है और उनका त्याग प्रेरणा देता हुआ भावी पीढ़ियों के राष्ट्र प्रेम की भावना जाग्रत रखता है |
" धरती म्हारी हूँ धणी , असुर फिरै किम आण " के आदर्शों का पालन करने वालों के जीवित रहते मातृभूमि को कैसे कोई शत्रु दलित कर सकता है | ठाकुर श्यामसिंह में आधुनिक साधनों-शस्त्रों से सज्जित बहु संख्यक अंग्रेज सेना का सामुख्य कर मातृभूमि की स्वाधीनता के लिए अपना जीवन न्योछावर किया और मालानी प्रदेश की स्वतंत्रता की रक्षा का पुनीत गौरवशाली पाठ पढ़ा कर सदा के लिए मातृभूमि की गोद में सो गया | कवि ने इस पर मरसिया कहा है -
स्यामा जिसा सपूत , मातभोम नही मरद |`
रजधारी रजपूत , विधना धडजै तूं वलै ||
ऐसे देश प्रेमी शूरवीरों के शोणित से सिंचित यह धरा वन्दनीय कहलाती है और उर्वरा बनती है | हरिराम आचार्य के शब्दों में -
उसके दीप्त मस्तक पर उठा था जाति का गौरव |
कि क्षत्रियता उसी के काव्य मद से मत्त होती थी ||
जहाँ भी त्याग का बलिदान का मोती नजर आता |
कलम उनकी उसी क्षण शब्द सूत्रों से पिरोती थी ||
लेखक : ठाकुर सोभाग्य सिंह शेखावत, भगतपुरा |
मातृभूमि के लिए अपने प्राणों का बलिदान का देने वाले ऐसे ही सपूतों के बल पर ही देश स्वतंत्र रहते है और उनका त्याग प्रेरणा देता हुआ भावी पीढ़ियों के राष्ट्र प्रेम की भावना जाग्रत रखता है |
पर अफ़सोस कि हमने मातृभूमि के लिए प्राणों की बलि देने वाले उन सपूतों को भुला दिया और उन लोगों की प्रतिमाओं पर मालाएँ चढ़ा रहे है जिन्होंने सिर्फ कुछ दिन अंग्रेजों की जेल में रहकर रोटियां तोड़ी | हमारी भावी पीढ़ी उन जेल भरने वाले सेनानियों से क्या प्रेरणा लेगी ?
आशियाने | ज्ञान दर्पण