मै दुर्गा की जयेष्ट-पुत्री,क्षात्र-धर्म की शान रखाने आई हूँ !
मै सीता का प्रतिरूप ,सूर्य वंश की लाज रखाने आई हूँ!1!
मै कुंती की अंश लिए ,चन्द्र-वंश को धर्म सिखाने आई हूँ !
मै सावित्री का सतीत्त्व लिए, यमराज को भटकाने आई हूँ !२!
मै विदुला का मात्रत्व लिए, तुम्हे रण-क्षेत्र में भिजवाने आई हूँ !
मै पदमनी बन आज,फिर से ,जौहर की आग भड़काने आई हूँ !३!
मै द्रौपदी का तेज़ लिए , अधर्म का नाश कराने आई हूँ !
मै गांधारी बन कर ,तुम्हे सच्चाई का ज्ञान कराने आई हूँ !४!
मै कैकयी का सर्थीत्त्व लिए ,तुम्हे असुर-विजय कराने आई हूँ !
मै उर्मिला बन ,तुम्हे तम्हारे क्षत्रित्त्व का संचय कराने आई !५!
मै शतरूपा बन ,तुम्हे सामने खडी , प्रलय से लड़वाने आई हूँ!
मै सीता बन कर ,फिर से कलयुगी रावणों को मरवाने आई हूँ!६!
मै कौशल्या बन आज ,राम को धरती पर पैदा करने आई हूँ !
मै देवकी बन आज ,कृष्ण को धरती पर पैदा करने आई हूँ !७!
मै वह क्षत्राणी हूँ जो, महा काळ को नाच नचाने आई हूँ !
मै वह क्षत्राणी हूँ जो ,तुम्हे तुम्हारे कर्तव्य बताने आई हूँ !८!
मै मदालसा का मात्रत्त्व लिए, माता की माहिमा,दिखलाने आई हूँ !
मै वह क्षत्राणी हूँ जो ,तुम्हे फिर से स्वधर्म बतलाने आई हूँ !९!
हाँ तुम जिस पीड़ा को भूल चुके, मै उसे फिर उकसाने आई हूँ !
मै वह क्षत्राणी हूँ ,जो तुम्हे फिर से क्षात्र-धर्म सिखलाने आई हूँ !१०!
"जय क्षात्र-धर्म "
कुँवरानी निशा कँवर नरुका
श्री क्षत्रिय वीर ज्योति