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Jan 31, 2013

"आज का क्षत्रिय"


कब तक दिल में सोले लिए फिरते रहोगे बेगाने से,
अब तो कहीं आग लगाओ तो कोई बात बने।

बिगड़े हालात समाज के भला कैसे यूँ सुधरेंगे यहाँ,
ऐसा कुछ हो कि ज़िंदगी के इरादे हों अटूट । 

सब्र के बाँध का कब तक  इम्तेहान दोगे,
अब दुआ करो कि हर गम की खुशियों से ठने।


छोड़ दो देखना अब सुनहरे कल का सपना खुली आखो से, 
आँख खोल के देख यहाँ कानून बनाने वाले सब बिके मिलेगे।

हे वीर तू फिर से अपना कानून बना और अपनी सता 
आज तू इज़्ज़त को बचा और ज़िन्दगी को भूल जा।

आज फिर रूहों को मसलकर वो सियासत निभा रहे,
हे क्षत्रिय तुम ही इस फटी-सी सियासत को सीलो।

आज वो हिन्दुवा सूरज कहीं छुप गया शायद,
अब तू निकल आ... जहाँ तेरे तेज का प्यासा है।





"गजेन्द्र सिंह रायधना" 



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