आज देश के सारे नपुसंक लोग हाथ धो कर राजा भय्या के पीछे पड़े है। अरे
इसमें चिढने की क्या बात है राजपूत तो स्वभाव से ही "दबंग" होते है, राजपूत
जैसे दिखते है वैसे होते भी है, हम उन धवल वस्त्रधारियों की भांति मन से
कलुषित नहीं है,जो खाते देश में है और चोरी का माल जमा कराते है स्वीश बेंक
में है। राजपूत जन्मजात ही देशभक्त,न्यायप्रिय,इमानदार,स्वाभिमानी और सुरवीर होता है। यह कारण है की 1947 के पश्चात् हमारे खिलाफ खूब जहर उगलने के बाद भी ये सफ़ेद पोश हमारी सामाजिक स्वीकार्यता को समाप्त नहीं कर सके।
इसका एक और बड़ा उदहारण राजा भय्या है। हर मुकद्दमे में नाम लिखने से कोई
अपराधी नहीं हो जाता। हमारे युवाओं के खिलाफ आज की व्यवस्था ने हजारो
मुकद्दमे लगाये पर क्या राजपूत समाप्त हो गए ? हमारा जीवट है की हम विपरीत परिस्थितियों में भी जिजीविषा का परित्याग नहीं करते। तब ही तो सदियों से आज तक भी देश की सरहद पर मस्तक कटाने में हम सबसे अग्रणीय है। पर अब हमें हमारे खिलाफ होने राजनितिक षड्यंत्रों को समझाना होगा और अपने मस्तिष्क में इस बात को स्थान देना होगा कि हम आज सामाजिक
राजनितिक रूप से गुलाम है। तब ही हमारे पुनः उत्थान का प्रारम्भ नहीं होगा। साथ ही
हमको क्षात्र धर्म की पालना करते हुए, हमारी सामाजिक स्वीकार्यता को
स्थापित करते हुए , लोगो की महत्ती आवश्यकता भी बनना पड़ेगा। इसमे कोई शक नहीं है कि राजपूती आन बान, शान और ठसक से लोग चिढ़ते है कुढ़ते है, पर अपने जीवन में वो सब भी करना चाहते है जो हम करते है। हमारे रहन सहन की लोग नक़ल भी करते है और हमसे जलते भी है, क्या दोहरे मापदंड है। पर इनकी
जलन भरी निंदा से हम हमारा स्वभाव नहीं बदल सकते, जब
तुर्को,मंगोलों,मुगलों और अंग्रेजो से हम नहीं मिटे तुम क्या मिटा
सकोगे,सोच कर तुम पर बहुत तरस आता है। सामन्तवाद के नारे लगाने वाले आज खुद वंशवाद के पोषक है, भ्रष्ट और अनेतिक है, इसलिए इनके दिन अब लदने वाले है, राजपूत इस देश की जरुरत थी और भविष्य में भी बनने वाली है। निष्कर्षतः यही कहा जा सकता है की हमारे देश के कागजी सुरवीरो को सच्चे सुरवीर पसंद नहीं है। तब ही तो जिन लोगो ने देश के जवानो के सर काटे उनके साथ लंच लिया जा रहा है। हद है बेशर्मी की कैसे गले से नीचे निवाला उतरा होगा ? सोच कर ही मन आत्म ग्लानी और क्षोभ से भर उठता है।