वो तीर अपनो के ही है जिनका शिकार हू मै
हू मै अपनो के ही जाल का शिकारी
मै तो उनके ही पदचिन्ह को देखता चला जा रहा हू
पर यह कारवा अब कभी अपनी मंजिल तक नहीं पहुचेगा
मै तो बस उन्ही के पीछे आँख मुद कर चलता जा रहा हू
जो मेरे पूर्वजों ने पूरा जीवन लगा दिया था यह राह बनाने मै
कभी आरसण के नाम पर तो कभी सेना के नाम पर
मै लड़ता फिर रहा हु अपनों से ही अपने हक की लड़ाई
पर खबर नहीं है उनको की मै खबरदार - होशियार हू मै
पर मै बेखबर नहीं हू तेरी इन सियासी चालो से
'गजेंद्र सिंह रायधना"