तेजाजी मुख्यत: राजस्थान के लेकिन उतने ही , मध्यप्रदेश,
गुजरात और कुछ हद तक पंजाब के भी लोक-नायक हैं। अवश्य ही इन प्रदेशों की
जनभाषाओं के लोक साहित्य में उनके आख्यान की अभिव्यक्ति के अनेक रूप भी
मौजूद हैं। राजस्थानी का ‘तेजा’ लोक-गीत तो इनमें शामिल है ही। वे इन
प्रदेशों के सभी समुदायों के आराध्य हैं। लोग तेजाजी के मन्दिरों में जाकर
पूजा-अर्चना करते हैं और दूसरी मन्नतों के साथ-साथ सर्प-दंश से होने वाली
मृत्यु के प्रति अभय भी प्राप्त करते हैं। स्वयं तेजाजी की मृत्यु, जैसा कि
उनके आख्यान से विदित होता है, सर्प- दंश से ही हुई थी। बचनबद्धता का पालन
करने के लिए तेजाजी ने स्वयं को एक सर्प के सम्मुख प्रस्तुत कर दिया था।
वे युद्ध भूमि से आए थे और उनके शरीर का कोई भी हिस्सा हथियार की मार से
अक्षत् नहीं था। घावों से भरे शरीर पर अपना दंश रखन को सर्प को ठौर नजर
नहीं आई, तो उसने काटने से इन्कार कर दिया। वचन-भंग होता देख घायल तेजाजी
ने अपना मुँह खोल कर जीभ सर्प के सामने फैला दी थी और सर्प ने उसी पर अपना
दंश रख कर उनके प्राण हर लिए थे। लोक-नायक की जीवन-यात्रा एक नितान्त
साधारण मनुष्य के रूप में शुरू होती है और वह किसी-न- किसी तरह के असाधारण
घटनाक्रम में पड़ कर एक असाधारण मनुष्य में रूपान्तरित हो जाता है। उसकी
कथा को कहने और सुनने वाला लोक ही उसे एक ऐसे मिथकीय अनुपात में ढाल देता
है कि इतिहास के तथ्यप्रेमी चिमटे से तो वह पकड़ा ही नहीं जा सकता। मसलन
तेजाजी जिस सर्प से अपनी जीभ पर दंश झेल कर अपनी वचनबद्धता निभाते हुए
नायकत्व हासिल करते हैं, इतिहास में उसका तथ्यात्मक खुलासा कुछ यह कह कर
दिया गया हैः जब तेजाजी पनेर से अपनी पत्नी के साथ लौट रहे थे उस समय उन पर
मीना सरदारों ने हमला किया क्योंकि वे पहले इस नागवंशी राजा द्वारा हरा
दिए गए थे. लोकाख्यान का नाग इतिहास की चपेट में आकर नागवंशी मुखिया की गति
को प्राप्त हो जाता है। लोक-नायकों का एक वर्ग ऐसा भी होता है, जिसमें वे
जन-साधारण के परित्राता अथवा परित्राणकर्त्ता बन कर अपनी छवि का अर्जन करते
हैं। वे जन-साधारण के पक्ष में, स्थापित शक्ति-तन्त्र के दमन और दुराचार
से लोहा लेते हैं। इस वर्ग के लोक- नायक अक्सर, हमेशा नहीं, कुछ हद तक
संस्थापित कानून की हदों से बाहर निकले हुए होते हैं। तेजाजी के बलिदान की
मूल कथा संक्षेप में इस प्रकार है. तेजाजी का जन्म तेजाजी का जन्म राजस्थान
के नागौर जिले में खरनाल गाँव में माघ शुक्ला, चौदस वार गुरुार संवत
ग्यारह सौ तीस, तदनुसार २९ जनवरी, १०७४ , को जाट परिवार में हुआ था। उनके
पिता चौधरी ताहरजी (थिरराज) राजस्थान के नागौर जिले के खरनाल गाँव के
मुखिया थे। तेजाजी के नाना का नाम दुलन सोढी था. उनकी माता का नाम
रामकुंवरी है. तेजाजी का ननिहाल त्यौद गाँव (किशनगढ़) में था. तेजाजी के
माता-पिता शंकर भगवान के उपासक थे. शंकर भगवान के वरदान से तेजाजी की
प्राप्ति हुई. कलयुग में तेजाजी को शिव का अवतार माना गया है. तेजा जब पैदा
हुए तब उनके चेहरे पर विलक्षण तेज था जिसके कारण इनका नाम रखा गया तेजा.
उनके जन्म के समय तेजा की माता को एक आवाज सुनाई दी -"कुंवर तेजा ईश्वर का
अवतार है, तुम्हारे साथ अधिक समय तक नहीं रहेगा."तेजाजी के जन्म के बारे
में जन मानस के बीच प्रचलित एक राजस्थानी कविता के आधार पर मनसुख रणवा का
मत है- जाट वीर धौलिया वंश गांव खरनाल के मांय। आज दिन सुभस भंसे बस्ती
फूलां छाय।। शुभ दिन चौदस वार गुरु, शुक्ल माघ पहचान। सहस्र एक सौ तीस में
प्रकटे अवतारी ज्ञान।। अर्थात - अवतारी तेजाजी का जन्म विक्रम संवत ११३०
में माघ शुक्ल चतुर्दशी, बृहस्पतिवर को नागौर परगना के खरनाल गाँव में
धौलिया जाट सरदार के घर हुआ. तेजाजी का हळसौतिया ज्येष्ठ मास लग चुका है।
ज्येष्ठ मास में ही ऋतु की प्रथम वर्षा हो चुकी है। ज्येष्ठ मास की वर्षा
अत्यन्त शुभ है। गाँव के मुखिया को ‘हालोतिया’या हळसौतिया करके बुवाई की
शुरुआत करनी है। मुखिया मौजूद नहीं है। उनका बड़ा पुत्र भी गाँव में नहीं
है। उस काल में परंपरा थी की वर्षात होने पर गण या कबीले के गणपति
सर्वप्रथम खेत में हल जोतने की शुरुआत करता था, तत्पश्चात किसान हल जोतते
थे. मुखिया की पत्नी अपने छोटे पुत्र को, जिसका नाम तेजा है, खेतों में
जाकर हळसौतिया का शगुन करने के लिए कहती है। तेजा माँ की आज्ञानुसार खेतों
में पहुँच कर हल चलाने लगा है। दिन चढ़ आया है। तेजा को जोरों की भूख लग आई
है। उसकी भाभी उसके लिए ‘छाक’ यानी भोजन लेकर आएगी। मगर कब? कितनी देर
लगाएगी? सचमुच, भाभी बड़ी देर लगाने के बाद ‘छाक’ लेकर पहुँची है। तेजा का
गुस्सा सातवें आसमान पर है। वह भाभी को खरी-खोटी सुनाने लगा है। तेजाजी ने
कहा कि बैल रात से ही भूके हैं मैंने भी कुछ नहीं खाया है, भाभी इतनी देर
कैसे लगादी. भाभी भी भाभी है। तेजाजी के गुस्से को झेल नहीं पाई और काम से
भी पीड़ित थी सो पलट कर जवाब देती है, एक मन पीसना पीसने के पश्चात उसकी
रोटियां बनाई, घोड़ी की खातिर दाना डाला, फिर बैलों के लिए चारा लाई और
तेजाजी के लिए छाक लाई परन्तु छोटे बच्चे को झूले में रोता छोड़ कर आई, फिर
भी तेजा को गुस्सा आये तो तुम्हारी जोरू जो पीहर में बैठी है. कुछ
शर्म-लाज है, तो लिवा क्यों नहीं लाते? तेजा को भाभी की बात तीर- सी लगती
है। वह रास पिराणी फैंकते हैं और ससुराल जाने की कसम खाते हैं. वह तत्क्षण
अपनी पत्नी पेमल को लिवाने अपनी ससुराल जाने को तैयार होता है। तेजा खेत से
सीधे घर आते हैं और माँ से पूछते हैं कि मेरी शादी कहाँ और किसके साथ हुई.
माँ को खरनाल और पनेर की दुश्मनी याद आई और बताती है कि शादी के कुछ ही
समय बाद तुम्हारे पिता और पेमल के मामा में कहासुनी हो गयी और तलवार चल गई
जिसमें पेमल के मामा की मौत हो गयी. माँ बताती है कि तेजा तुम्हारा ससुराल
गढ़ पनेर में रायमल्जी के घर है और पत्नी का नाम पेमल है. सगाई ताउजी बख्शा
राम जी ने पीला- पोतडा़ में ही करदी थी. तेजा ससुराल जाने से पहले विदाई
देने के लिये भाभी से पूछते हैं. भाभी कहती है -"देवरजी आप दुश्मनी धरती पर
मत जाओ. आपका विवाह मेरी छोटी बहिन से करवा दूंगी."तेजाजी ने दूसरे विवाह
से इनकार कर दिया. बहिन के ससुराल में तेजाजी भाभी फिर कहती है कि पहली बार
ससुराल को आने वाली अपनी दुल्हन पेमल का ‘बधावा’ यानी स्वागत करने वाली
अपनी बहन राजल को तो पहले पीहर लेकर आओ। तेजाजी का ब्याह बचपन में ही
पुष्कर में पनेर गाँव के मुखिया रायमल की बेटी पेमल के साथ हो चुका था।
विवाह के कुछ समय बाद दोनों परिवारों में खून- खराबा हुआ था। तेजाजी को पता
ही नहीं था कि बचपन में उनका विवाह हो चुका था। भाभी की तानाकशी से हकीकत
सामने आई है। जब तेजाजी अपनी बहन राजल को लिवाने उसकी ससुराल के गाँव तबीजी
के रास्ते में थे, तो एक मीणा सरदार ने उन पर हमला किया। जोरदार लड़ाई
हुई। तेजाजी जीत गए। तेजाजी द्वारा गाडा गया भाला जमीन में से कोई नहीं
निकाल पाया और सभी दुश्मन भाग गए. तबीजी पहुँचे और अपने बहनोई जोगाजी सियाग
के घर का पता पनिहारियों से पूछा. उनके घर पधार कर उनकी अनुमति से राजल को
खरनाल ले आए। तेजाजी का पनेर प्रस्थान तेजाजी अपनी माँ से ससुराल पनेर
जाने की अनुमति माँगते हैं. माँ को अनहोनी दिखती है और तेजा को ससुराल जाने
से मना करती है. भाभी कहती है कि पंडित से मुहूर्त निकलवालो. पंडित तेजा
के घर आकर पतड़ा देख कर बताता है कि उसको सफ़ेद देवली दिखाई दे रही है जो
सहादत की प्रतीक है. सावन व भादवा माह अशुभ हैं. पंडित ने तेजा को दो माह
रुकने की सलाह दी. तेजा ने कहा कि तीज से पहले मुझे पनेर जाना है चाहे
धन-दान ब्रह्मण को देना पड़े. वे कहते हैं कि जंगल के शेर को कहीं जाने के
लिए मुहूर्त निकलवाने की जरुरत नहीं है. तेजा ने जाने का निर्णय लिया और
माँ-भाभी से विदाई ली. अगली सुबह वे अपनी लीलण नामक घोड़ी पर सवार हुए और
अपनी पत्नी पेमल को लिवाने निकल पड़े। जोग-संयोगों के मुताबिक तेजा को
लकडियों से भरा गाड़ा मिला, कुंवारी कन्या रोती मिली, छाणा चुगती लुगाई ने
छींक मारी, बिलाई रास्ता काट गई, कोचरी दाहिने बोली, मोर कुर्लाने लगे.
तेजा अन्धविसवासी नहीं थे. सो चलते रहे. बरसात का मौसम था. कितने ही उफान
खाते नदी-नाले पार किये. सांय काल होते-होते वर्षात ने जोर पकडा. रस्ते में
बनास नदी उफान पर थी. ज्यों ही उतार हुआ तेजाजी ने लीलण को नदी पार करने
को कहा जो तैर कर दूसरे किनारे लग गई. तेजाजी बारह कोस अर्थात ३६ किमी का
चक्कर लगा कर अपनी ससुराल पनेर आ पहुँचे। तेजाजी का पनेर आगमन शाम का वक्त
था। पनेर गढ़ के दरवाजे बंद हो चुके थे. कुंवर तेजाजी जब पनेर के कांकड़
पहुंचे तो एक सुन्दर सा बाग़ दिखाई दिया. तेजाजी भीगे हुए थे. बाग़ के
दरवाजे पर माली से दरवाजा खोलने का निवेदन किया. माली ने कहा बाग़ की चाबी
पेमल के पास है, मैं उनकी अनुमति बिना दरवाजा नहीं खोल सकता. कुंवर तेजा ने
माली को कुछ रुपये दिए तो झट ताला खोल दिया. रातभर तेजा ने बाग़ में
विश्राम किया और लीलन ने बाग़ में घूम-घूम कर पेड़-पौधों को तोड़ डाला.
बाग़ के माली ने पेमल को परदेशी के बारे में और घोडी द्वारा किये नुकशान के
बारे में बताया. पेमल की भाभी बाग़ में आकर पूछती है कि परदेशी कौन है,
कहाँ से आया है और कहाँ जायेगा. तेजा ने परिचय दिया कि वह खरनाल का जाट है
और रायमल जी के घर जाना है. पेमल की भाभी माफ़ी मांगती है और बताती है कि
वह उनकी छोटी सालेली है. सालेली (साले की पत्नि) ने पनेर पहुँच कर पेमल को
खबर दी. कुंवर तेजाजी पनेर पहुंचे. पनिहारियाँ सुन्दर घोडी पर सुन्दर जवाई
को देखकर हर्षित हुई. तेजा ने रायमल्जी का घर पूछा. सूर्यास्त होने वाला
था. उनकी सास गाएँ दूह रही थी। तेजाजी का घोड़ा उनको लेकर धड़धड़ाते हुए
पिरोल में आ घुसा। सास ने उन्हें पहचाना नहीं। वह अपनी गायों के डर जाने से
उन पर इतनी क्रोधित हुई कि सीधा शाप ही दे डाला, ‘जा, तुझे काला साँप
खाए!’ तेजाजी उसके शाप से इतने क्षुब्ध हुए कि बिना पेमल को साथ लिए ही लौट
पड़े। तेजाजी ने कहा यह नुगरों की धरती है, यहाँ एक पल भी रहना पाप है.
तेजाजी का पेमल से मिलन अपने पति को वापस मुड़ते देख पेमल को झटका लगा.
पेमल ने पिता और भाइयों से इशारा किया की वे तेजाजी को रोकें. श्वसुर और
सेल तेजाजी को रोकते हैं पर वे मानते नहीं हैं. वे घर से बहार निकल आते
हैं. पेमल की सहेली थी लाछां गूजरी। उसने पेमल को तेजाजी से मिलवाने का
यत्न किया। वह ऊँटनी पर सवार हुई और रास्ते में मीणा सरदारों से लड़ती-
जूझती तेजाजी तक जा पहुँची। उन्हें पेमल का सन्देश दिया। अगर उसे छोड़ कर
गए, तो वह जहर खा कर मर जाएगी। उसके मां-बाप उसकी शादी किसी और के साथ तय
कर चुके हैं। लाछां बताती है, पेमल तो मरने ही वाली थी, वही उसे तेजाजी से
मिलाने का वचन दे कर रोक आई है। लाछन के समझाने पर भी तेजा पर कोई असर नहीं
हुआ. पेमल अपनी माँ को खरी खोटी सुनाती है. पेमल कलपती हुई आई और लिलन के
सामने कड़ी हो गई. पेमल ने कहा - आपके इंतजार में मैंने इतने वर्ष निकले.
मेरे साथ घर वालों ने कैसा वर्ताव किया यह मैं ही जानती हूँ. आज आप चले गए
तो मेरा क्या होगा. मुझे भी अपने साथ ले चलो. मैं आपके चरणों में अपना जीवन
न्यौछावर कर दूँगी. पेमल की व्यथा देखकर तेजाजी पोल में रुके. सभी ने पेमल
के पति को सराहा. शाम के समय सालों के साथ तेजाजी ने भोजन किया. देर रात
तक औरतों ने जंवाई गीत गए. पेमल की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था. तेजाजी
पेमल से मिले। अत्यन्त रूपवती थी पेमल। दोनों बतरस में डूबे थे कि लाछां की
आहट सुनाई दी। लाछां गुजरी की तेजाजी से गुहार लाछां गुजरी ने तेजाजी को
बताया कि मीणा चोर उसकी गायों को चुरा कर ले गए हैं…. अब उनके सिवाय उसका
कोई मददगार नहीं। लाछां गुजारी ने तेजाजी से कहा कि आप मेरी सहायता कर अपने
क्षत्रिय धर्म की रक्षा करो अन्यथा गायों के बछडे भूखे मर जायेंगे. तेजा
ने कहा राजा व भौमिया को शिकायत करो. लाछां ने कहा राजा कहीं गया हुआ है और
भौमिया से दश्मनी है. तेजाजी ने कहा कि पनेर में एक भी मर्द नहीं है जो
लड़ाई के लिए चढाई करे. तुम्हारी गायें मैं लाऊंगा. तेजाजी फिर अपनी लीलण
घोड़ी पर सवार हुए। पंचों हथियार साथ लिए. पेमल ने घोडी कि लगाम पकड़ कर
कहा कि मैं साथ चलूंगी. लड़ाई में घोडी थम लूंगी. तेजा ने कहा पेमल जिद मत
करो. मैं क्षत्रिय धर्म का पालक हूँ. मैं अकेला ही मीणों को हराकर गायें
वापिस ले आऊंगा. तेजाजी के आदेश के सामने पेमल चुप हो गई. पेमल अन्दर ही
अन्दर कंप भी रही थी और बद्बदाने लगी - डूंगर पर डांडी नहीं, मेहां अँधेरी
रात पग-पग कालो नाग, मति सिधारो नाथ अर्थात पहाडों पर रास्ता नहीं है,
वर्षात की अँधेरी रात है और पग- पग पर काला नाग दुश्मन है ऐसी स्थिति में
मत जाओ. तेजाजी धर्म के पक्के थे सो पेमल की बात नहीं मानी और पेमल से
विदाई ली. पेमल ने तेजाजी को भाला सौंपा. वर्तमान सुरसुरा नामक स्थान पर उस
समय घना जंगल था. वहां पर बालू नाग , जिसे लोक संगीत में बासक नाग बताया
गया है, घात लगा कर बैठे थे. रात्रि को जब तेजाजी मीणों से गायें छुड़ाने
जा रहे थे कि षड़यंत्र के तहत बालू नाग ने रास्ता रोका. बालू नाग बोला कि
आप हमें मार कर ही जा सकते हो. तेजाजी ने विश्वास दिलाया कि मैं धर्म से
बंधा हूँ. गायें लाने के पश्चात् वापस आऊंगा. मेरा वचन पूरा नहीं करुँ तो
समझना मैंने मेरी माँ का दूध नहीं पिया है. वहां से तेजाजी ने भाला, धनुष,
तीर लेकर लीलन पर चढ़ उन्होंने चोरों का पीछा किया. सुरसुरा से १५-१६ किमी
दूर मंडावारियों की पहाडियों में मीणा दिखाई दिए. तेजाजी ने मीणों को
ललकारा. तेजाजी ने बाणों से हमला किया. मीने ढेर हो गए, कुछ भाग गए और कुछ
मीणों ने आत्मसमर्पण कर दिया. तेजा का पूरा शारीर घायल हो गया और तेजा सारी
गायों को लेकर पनेर पहुंचे और लाछां गूजरी को सौंप दी . लाछां गूजरी को
सारी गायें दिखाई दी पर गायों के समूह के मालिक काणां केरडा नहीं दिखा तो
वह उदास हो गई और तेजा को वापिस जाकर लाने के लिए बोला. तेजाजी वापस गए.
पहाड़ी में छुपे मीणों पर हमला बोल दिया व बछड़े को ले आये. इस लड़ाई में
तेजाजी का शारीर छलनी हो गया. बताते हैं कि लड़ाई में १५० मीणा लोग मारे गए
जिनकी देवली मंदावारिया की पहाड़ी में बनी हैं. सबको मार कर तेजाजी विजयी
रहे एवं वापस पनेर पधारे. तेजाजी की वचन बद्धता लाछां गूजरी को काणां केरडा
सौंप कर लीलण घोडी से बोले कि तुम वापस उस जगह चलो जहाँ मैं वचन देकर आया
हूँ. तेजाजी सीधे बालू नाग के इन्तजार स्थल पर आते हैं. बालू नाग से बोलते
हैं की मैं मेरा वचन पूरा करके आया हूँ तुम अब अपना वचन पूरा करो. बालू नाग
का ह्रदय काँप उठा. वह बोला -"मैं तुम्हारी इमानदारी और बहादुरी पर
प्रसन्न हूँ. मैंने पीढी पीढी का बैर चुकता कर लिया. अब तुम जाओ मैं
तुम्हें जीवन दान देता हूँ. तुम अपने कुल के एक मात्र देवता कहलाओगे. यह
मेरा वरदान है."तेजाजी ने कहा कि मैं अपने वचनों से पीछे नहीं हटता वह अपने
प्राण को हर हाल में पूरा करेगा. बालू नाग ने अपना प्रण पूरा करने के लिए
तेजाजी की जीभ पर हमला किया. तेजाजी लीलन से नीचे गिरे और वीर गति को
प्राप्त हो गए. वे कलयुग के अवतारी बन गए. लोक परम्परा में तेजाजी को काले
नाग द्वारा डसना बताया गया है. कहते हैं की लाछां गूजरी जब तेजाजी के पास
आयी और गायों को ले जाने का समाचार सुनाया तब रास्ते में वे जब चोरों का
पीछा कर रहे थे, उसी दौरान उन्हें एक काला नाग आग में घिरा नजर आया।
उन्होंने नाग को आग से बाहर निकाला। बासग नाग ने उन्हें वरदान की बजाय यह
कह कर शाप दिया कि वे उसकी नाग की योनी से मुक्ति में बाधक बने। बासग नाग
ने फटकार कर कहा - मेरा बुढापा बड़ा दुखदाई होता है. मुझे मरने से बचाने पर
तुम्हें क्या मिला. तेजाजी ने कहा - मरते, डूबते व जलते को बचाना मानव का
धर्म है. मैंने तुम्हारा जीवन बचाया है, कोई बुरा काम नहीं किया. भलाई का
बदला बुराई से क्यों लेना चाहते हो. नागराज लीलन के पैरों से दूर खिसक जाओ
वरना कुचले जाओगे. नाग ने प्रायश्चित स्वरूप उन्हें डसने का प्रस्ताव रखा।
उन्होंने नाग को वचन दिया कि लाछां गूजरी की गायें चोरों से छुड़ा कर उसके
सुपुर्द करने के बाद नाग के पास लौट आएँगे। तेजाजी ने पाया कि लाछां की
गायें ले जाने वाले उसी मीणा सरदार के आदमी थे, जिसे उन्होंने पराजित करके
खदेड़ भगाया था। उनसे लड़ते हुए तेजाजी बुरी तरह लहुलूहान हो गए। गायें
छुड़ा कर लौटते हुए अपना वचन निभाने वे नाग के सामने प्रस्तुत हो गए।
नागराज ने कहा - तेजा नागराज कुंवारी जगह बिना नहीं डसता. तुम्हारे रोम-
रोम से खून टपक रहा है. मैं कहाँ डसूं? तेजाजी ने कहा अपने वचन को पूरा
करो. मेरे हाथ की हथेली व जीभ कुंवारी हैं, मुझे डसलो. नागराज ने कहा
-"तेजा तुम शूरवीर हो. मैं प्रसन्न होकर तुम्हें वरदान देता हूँ कि तुम
तुम्हारे कुल के देवता के रूप में पूजे जावोगे. आज के बाद काला सर्प का
काटा हुआ कोई व्यक्ति यदि तुम्हारे नाम की तांती बांध लेगा तो उसका पान उतर
जायेगा. किसान खेत में हलोतिया करने से पहले तुम्हारे नाम की पूजा करेगा
और तुम कलयुग के अवतारी माने जावोगे. यही मेरा अमर आशीष है."नाग को उनके
क्षत्-विक्षत् शरीर पर दंश रखने भर को भी जगह नजर नहीं आई और अन्तत: तेजाजी
ने अपनी जीभ पर सर्प-दंश झेल कर और प्राण दे कर अपने वचन की रक्षा की।
तेजाजी ने नजदीक ही ऊँट चराते रैबारी आसू देवासी को बुलाया और कहा,"भाई आसू
देवासी ! मुसीबत में काम आने वाला ही घर का होता है, तू मेरा एक काम पूरा
करना. मेरी इहलीला समाप्त होने के पश्चात् मेरा रुमाल व एक समाचार रायमल्जी
मेहता के घर लेजाना और मेरे सास ससुर को पांवा धोक कहना. पेमल को मेरे
प्यार का रुमाल दे देना, सारे गाँव वालों को मेरा राम-राम कहना और जो कुछ
यहाँ देख रहे हो पेमल को बतादेना और कहना कि तेजाजी कुछ पल के मेहमान
हैं."लीलन घोडी की आँखों से आंसू टपकते देख तेजाजी ने कहा -"लीलन तू धन्य
है. आज तक तूने सुख- दुःख में मेरा साथ निभाया. मैं आज हमेशा-हमेशा के लिए
तुम्हारा साथ छोड़ रहा हूँ. तू खरनाल जाकर मेरे परिवार जनों को आँखों से
समझा देना."आसू देवासी सीधे पनेर में रायमल्जी के घर गया और पेमल को कहा
-"राम बुरी करी पेमल तुम्हारा सूरज छुप गया. तेजाजी बलिदान को प्राप्त हुए.
मैं उनका मेमद मोलिया लेकर आया हूँ."तेजाजी के बलिदान का समाचार सुनकर
पेमल के आँखों के आगे अँधेरा छा गया. उसने मां से सत का नारियल माँगा, सौलह
श्रृंगार किये, परिवार जनों से विदाई ली और सुरसुरा जाकर तेजाजी के साथ
सती हो गई. पेमल जब चिता पर बैठी है तो लिलन घोडी को सन्देश देती है कि
सत्य समाचार खरनाल जाकर सबको बतला देना. कहते हैं कि अग्नि स्वतः ही
प्रज्वलित हो गई और पेमल सती हो गई. लोगों ने पूछा कि सती माता तुम्हारी
पूजा कब करें तो पेमल ने बताया कि -"भादवा सुदी नवमी की रात्रि को तेजाजी
धाम पर जागरण करना और दसमी को तेजाजी के धाम पर उनकी देवली को धौक लगाना,
कच्चे दूध का भोग लगाना. इससे मनपसंद कार्य पूर्ण होंगे. यही मेरा अमर आशीष
है"लीलन घोड़ी सतीमाता के हवाले अपने मालिक को छोड़ अंतिम दर्शन पाकर सीधी
खरनाल की तरफ रवाना हुई. परबतसर के खारिया तालाब पर कुछ देर रुकी और वहां
से खरनाल पहुंची. खरनाल गाँव में खाली पीठ पहुंची तो तेजाजी की भाभी को
अनहोनी की शंका हुई. लीलन की शक्ल देख पता लग गया की तेजाजी संसार छोड़
चुके हैं. तेजाजी की बहिन राजल बेहोश होकर गिर पड़ी, फिर खड़ी हुई और
माता-पिता, भाई-भोजाई से अनुमति लेकर माँ से सत का नारियल लिया और खरनाल के
पास ही पूर्वी जोहड़ में चिता चिन्वाकर भाई की मौत पर सती हो गई. भाई के
पीछे सती होने का यह अनूठा उदहारण है. राजल बाई को बाघल बाई भी कहते हैं
राजल बाई का मंदिर खरनाल में गाँव के पूर्वी जोहड़ में हैं. तेजाजी की
प्रिय घोड़ी लीलण भी दुःख नहीं झेल सकी और अपना शारीर छोड़ दिया. लीलण
घोड़ी का मंदिर आज भी खरनाल के तालाब के किनारे पर बना है. इतिहासकारों ने
तेजाजी के निधन की तिथि दर्ज की: २८ अगस्त, ११०३ ईस्वी। तेजाजी की चमत्कारी
शक्तियां आज के विज्ञान के इस युग में चमत्कारों की बात करना पिछड़ापन
माना जाता है और विज्ञान चमत्कारों को स्वीकार नहीं करता. परन्तु तेजाजी के
साथ कुछ चमत्कारों की घटनाएँ जुडी हुई हैं जिन पर नास्तिक व्यक्तियों को
भी बरबस विस्वास करना पड़ता है |