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Sep 27, 2010

परिचय:--संस्था एवं संस्थापक

कुंवरानी निशाकँवर-
राजर्षि मधुसुदन दास जी महाराज जो कि सुविख्यात "निर्वाणी अखाड़े " के खालसा के "श्री महंत" है \उन्हें "सूक्ष्म ईश्वरीय चेतना "स्वर यह दिव्य निर्देश प्राप्त है कि इस ब्रह्माण्ड ,सृष्टि को विनाश यानि क्षय से बचाने के लिए ही क्षात्र-तत्त्व कि उत्पत्ति स्वयं श्री मन्न नारायण ने अपने ह्रदय से की है |इस तत्त्व के उपासक को ही क्षत्रिय कहा जाता है |हिमालय की कंदराओ में बैठ कर तपस्या को आतुर तत्कालीन क्षत्रिय समाज के प्रतीक अर्जुन को श्री कृष्ण के रूप में श्री हरि ने यह समझाया था कि "इश्वर द्वारा निर्धारित सहजं कर्म यानि जन्म के साथ उत्पन्न स्वधर्म को छोड़ कर यदि कोई मोक्ष के लिए अन्य रह खोजता है तो यह उसके द्वारा ईश्वरीय आदेश कि अवहेलना मात्र है |जब सत्य और असत्य के मध्य ,न्याय और अन्याय के मध्य,अच्छाई और बुराई के मध्य,धर्मं और अधर्म के मध्य संघर्ष हो तब कोई तीर्थ या तपोभूमि नहीं बल्कि रणभूमि "धर्म-संग्राम स्थल" ही तपोभूमि होती है है |और आज तो पूरी मानव सभ्यता ,और सभी मानवीय मूल्यों का सर्वथा लोप हो चुका है और यह सम्पूर्ण सृष्टि महाविनाश के कगार पर खड़ी है |यह इस बात को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि "आज क्षात्र-तत्त्व सुषुप्त हो चुका है "|अत: इस क्षात्र-तत्त्व को जागृत करना आज की सबसे बड़ी और कठोर तपस्या है |श्री कृष्ण की यह फटकार भी मिली कि "तुम कैसे भक्त हो जो अपने इष्ट के बताये रास्ते (गीता में ) "स्वधर्म पालन "को छोड़ अपने इष्ट से मिलन ,और मोक्ष के नितांत व्यक्तिगत स्वार्थ में पड़ गए हो ?" आज कि सर्वाधिक आवश्यकता है कि क्षत्रिय अपने धर्म का पालन करे क्योंकि जब क्षत्रिय अपने धर्म का पालन नहीं करता है तब मानव तो क्या देवता पशु-पक्षी और कीट-पतंग तक भी अपने सृष्टि-धर्म का पालन बंद कर देते है जिसके परिणाम स्वरूप यह सारी सृष्टि महा-पतन की ओर बढ़ जाती है है |
राजर्षि जी को मिले इस दिव्य निर्देश के बाद राजर्षि जी ने अपने शिष्यों के चुनिन्दा समूह को मंथन के लिए अपनी तपोभूमि में बुलाया |और दो दिवसीय विचार विमर्ष के बाद "श्री क्षत्रिय वीर ज्योति' की स्थापना की |नवम्बर २००७ में स्थापित इस संगठन का वास्तविक कार्य भारत के विभिन्न क्षेत्रो में फैले क्षत्रिय संगठनो के प्रतिनिधियों के मंथन -शिविर के समापन पर स्थापित क्षत्रिय-संसद के गठन के साथ गति पकड़ेगा |इसके लिए सभी संगठनो को नवम्बर २०१० में दो दिवसीय मंथन शिविर के लिए आमंत्रित किया जारहा है|राजर्षि जी का थोडा परिचय भी इस संस्था परिचय के साथ अपेक्षित होगा |आज से करीब ८७ वर्षो पूर्व श्री कृष्ण के वंश इन्हें पहले यादव और अब जादौन भी कहा जाता है की एक रियासत करौली(राजस्थान) में है,इस राजपरिवार की जब वंश बेल में गोद लेने की जरुरत पड़ती है तो गढ़ी गाँव जिसे राजा की गढ़ी भी कहा जाता है से ही इस राजवंश की लता को बढाया जाता है ,,इसी राजा किगढ़ी में राजर्षि जी का जन्मा हुआ है |अर्थात करौली नरेश के निकट रक्त सम्बन्धी है राजर्षि जी |युवा अवस्था में विवाह हुआ और कुछ वर्षो के दांपत्य जीवन के बाद एक एक बच्ची के जन्म के बाद राजर्षि जी की पत्नी स्वर्ग सिधार गयी |काफी लोगो के दबाव के बावजूद राजर्षि जी ने दूसरा विवाह अनावश्यक बता कर ताल दिया |समयानुसार बच्ची बड़ी हुई एवं एक अच्छे राजपूत परिवार में बच्ची के विवाह के तुरंत बाद (विदाई के ही दिन) राजर्षि जी ने वैराग्य ले लिया |लोगो ने सोचा पुत्री वियोग में कही अश्रु बहा रहे होंगे |किन्तु राजर्षि जी तो पहुँच गए निर्वाणी अखाड़े के संत श्री श्री १००८ गोविन्द दास जी महाराज के आश्रम में |विदिवत गृहस्थ छोड़ वैराग्य लेने के बाद १२ वर्षो तक सिर्फ "दोपहर में एक लिटर पानी में सांठी(पुनर्वा ) घोट कर पिया |इसके अलावा न कोई अन्न,जल, फल, फूल, या कांड ही ग्रहण किया |लगातार जप एवं ताप के परिणाम स्वरूप निर्वाणी अखाड़े के संस्थापक श्री श्री १००८ श्री निर्गुणदास जी महाराज के परम शिष्य श्री श्री १००८ श्री अगरदास जी महाराज ,जिन्होंने अपने समकालीन बादशाह अकबर का दर्प राजा मान सिंह के समक्ष भंग किया था ,राजर्षि जी के साथ साक्षात् प्रकट होकर वार्तालाप करने लगे |परिणाम स्वरूप लाखो लोगो के दुःख दूर किये |पुत्र काम्येष्टि यज्ञ भी करवाए गए जिनमे अब तक कुल १२१४ बच्चो का जन्म हुआ है |जिनमे क्षत्रिय वीर ज्योति के बहुत से सदस्यों के बच्चे भी सम्मिलित है|कुम्भ में पहली झांकी श्री निर्वाणी अखाड़े की ही निकलती है |राजर्षि जी उस अखाड़े के खालसा के श्री महंत फिछले ७ वर्षो से है |इस खालसा में करीब १०००० उच्च कोटि के संत है |राजर्षि जी हर समय प्रत्येक कार्यकर्त्ता के लिए सभी प्रकार की समस्याओ पर सुझाव,परामर्श एवं उपाय बताने के लिए तत्पर रहते है |उच्च कोटि का अध्यात्मिक ज्ञान के साथ ही दिव्य शक्तियों से संपन्न है |आयुर्वेद का भी उच्च श्रेणी का ज्ञान है |राजपूतो के साथ ही जाट ,गुर्जर एवं मीणा आदि अन्य जातियों पर भी राजर्षि जी का बहुत अच्छा प्रभाव है |आशा है इतना परिचय पर्याप्त होगा |

"जय क्षात्र-धर्मं "
प्रचार प्रमुख
श्री क्षत्रिय वीर ज्योति


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मेरी शेखावाटी
ताऊ पत्रिका

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