इतिहास का संधि विच्छेद है इति + हास अर्थात यह हो चूका है ! यदि किसी विद्वेष की भावना को दूर रखा जाय तो जो निश्चय ही हो चूका है वही इतिहास में लिखा जाना चाहिए ! किन्तु जैसा कि हम पहले ही कह चुके है कि भारतीय इतिहास में तोड़मरोड़ कि गई है , उ...सके साथ छेड़छाड़ किया गया है अत: कुछ स्वार्थी तत्वों ने अपने स्वार्थ के लिए , उसमे कुछ शब्द जोड़े एवं बहुतसे शब्द घटा दिए है ! बावजूद इस सबके भारतीय इतिहास में क्षत्रियो की गौरव गथाओ कि कोई कमी नहीं है ! पूर्व प्रधान मंत्री श्री चन्द्र शेखर ने तो कहा है कि " यदि भारतीय इतिहास मेंसे राजपूत इतिहास को निकल दे तो शून्य शेष रह जायेगा " ! निसंदेह तमाम जोड़ तोड़ के बावजूद राजपूतो को इतिहास में एक प्रमुख स्थान है ! इसके लिए राजपूत , इतिहासकारों का अहसानमंद नहीं हो सकता क्योकि राजपूतो ने अपनी वीरता, त्याग एवं बलिदान का जो कौशल दिखाया; वह संसार कि किसी जाति ने प्रदर्षित नहीं किया !
कर्नल टोड ने " हिस्टरी ऑफ़ राजपुताना " में लिखा है कि " विश्वास ही नहीं होता है कि राजपूत जैसी जाति मूलतः भारतीय ही हो "! उसने आगे लिखा है कि राजपूताने की चप्पा-चप्पा भूमि थर्मपोली है ! संसार में वीर जातियों की कोई कमी नहीं है ! बहुत सी जातियों ने वीरता का परिचय दिया है ! संसार में युद्ध प्रिय या युद्धकला में पारंगत जातियों की भी कोई कमी नहीं है ! और शासन करने में पारंगत जातियों की भी कोई कमी नहीं है ! और शायद दानी एवं उदार जातियों की भी कोई कमी नहीं रही है ! लेकिन इन सरे गुणों का समावेश किसी एक जातिमे हो एसा उदहारण किसी जाति में आज तक देखने को नहीं मिला है ! राजपूत जाति प्रसिद्ध इसलिए नहीं है की उसने लम्बे समय तक शासन किया है बल्कि वह अपने गुणों की वजह से श्रद्धयोग्य रही है ! राजपूतो में त्याग, बलिदान, वीरता, एवं न्यायप्रियता तथा उदारता का अद्भुत संगम का समावेश है ! सर काटने बाद घंटो लड़ाई जरी रखने का उदहारण केवल और केवल राजपूत जाति में ही देखने को मिला है |
परिणय एवं प्रण मेसे हमने हामेशाही प्रण को ही स्वीकार किया है .विवाह के गठजोड़ो को हमने काटकर युद्धों में प्रवेश किया है ! हार या मौत निश्चय जानकर भी हमने युद्ध किया है ! हमने कभी भी मौत का भय नहीं माना ! संसार की अधिकांश वीर जातियों में केवल उनके पुरुष वर्ग की वीर गाथाये है ! किन्तु अकेली राजपूत जाति ऐसी है जिसमे क्षत्रानियो को क्षत्रियो से ज्यादा जाति के गौरव का श्रेय जाता है ! सतीत्व की जो अनोखी मिसाल क्षत्रानियो ने प्रस्तुत कि; वह वाकई आश्चर्य जनक है ! केवल मर जाने के बाद पति के साथ चिता में जलना ही सतीत्व नहीं है ....बल्कि पति के अधूरे कार्य एवं लक्ष्य में अपने को समर्पित कर देना उससे भी बड़ा सतीत्व है ! और क्षत्रानियो ने इस कर्तव्य को बखूबी निभाया है ! यह कौन मुर्ख है जो इसे उस ज़माने की परम्परा कह रहा है ? विधवा का पुन: विवाह के बारे में, मै यहाँ ज्यादा कुछ नहीं लिखना चाहता इसके असली कारण है की विधवा पुन: विवाह की बात वे ही लोग कर सकते है जो कि विवाह को एक सौदा मानते है !
जरा ध्यान करो एवं मनन करो की हमने ऐसी कौनसी व्वस्था की है कि विपरीत समय निकल जायेगा और अच्छा समय आने पर फिर से क्षात्र धर्मं का पुनरुद्धार होगा ! हम हर रोज कोई न कोई क्षत्रिय कर्म छोड़ते जारहे है ! ...तथा एक दिन ऐसा भी आयेगा कि हम में कोई क्षत्रिय गुण शेष है या नहीं, लोग इस पर भी सट्टा लगायेंगे ! हमारे पास क्षात्र धर्मं को पुनर्स्थापित करने की कोई योजना है ? योजना तो दूर की बात है हम तो उस बारे में सोचते भी नहीं, जैसे समय एवं व्वस्था ने हमे बिलकुल हरा दिया है, पंगु बना दिया है !
अपने खोये गौरव को प्राप्त करने के लिए हमको ही कुछ करना होगा ! इस कार्य हमारी सहायता करने नहीं आयेगा ! हाँ यदि हम अपनी कमर कश कर मैदान में उतरोगे, तो सहायता के लिए स्वयं श्री कृष्ण सारथी बनकर फिर से गीता का रसपान कराने आयेंगे पर शायद हम उन्हें पहचान न सके ! केवल अपना ममेरा, चचेरा, फुफेरा या जाति भाई ही मान सके, पर यदि अर्जुन की तरह हमने उसे अपना गुरु एवं शखा भी मान लिया तो इस महाभारत को अवश्य जीत लेंगे ! आपको इतनी सारी कड़वी सच्चाई भी बताई गयी है ! आप स्वयं जानते है की हमने आज यदि आलस्य नही छोड़ा तो हम अपना क्षत्रित्व, अपना पुरुषार्थ, अपना धर्मं, सतीत्व, अपनी पहिचान सब कुछ गवां देंगे ! आज हमारे पास जो बचा है उससे संतोष मत करो, अपने क्षत्रित्व को बढाओ ! हमे अपना खोया गौरव प्राप्त करना है ! मरे हुए शारीर को कोई भी अपने घर में नहीं रखता है , उसे श्मशान में अंतिम क्रिया के लिए लेजाया जाता है ! आप अपने को मरा हुआ मत दिखाओ, नहीं तो यह संसार क्षण मात्र में हमे फूंक आयेंगे और तब क्षत्रिय केवल " भाप का इंजन " बनकर रह जायेगा, जो केवल इतिहास की वस्तु मात्र है ! इतिहास पर गर्व करो पर अपने वर्तमान को भी अपने पूर्वजों के इतिहास के तुल्य तो बनाओ, जिससे लोग कमसे कम इस बात पर विश्वास तो करें कि हम भगवान श्री राम एवं श्री कृष्ण के वंशज है |
"जय क्षात्र-धर्मं "
कुँवरानी निशा कँवर नरुका
"श्री क्षत्रिय वीर ज्योति "
शर्त जीतने हेतु उस वीर ने अपना सिर काटकर दुर्ग में फेंक दिया |
बहुत काम की है ये रेगिस्तानी छिपकली -गोह|
एक साधारण पर एतिहासिक जगह