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Jun 26, 2011

हमारी भूलें : संस्कृत भाषा के ज्ञान का अभाव - 2

पुराणों का अध्ययन करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि इन ग्रंथों कि रचना क्षत्रियों कि निंदा करने व ब्राह्मणों की श्रेष्ठता प्रतिपादित करने के लिए ही की गई है | इसी उद्देश्य से मनगढ़ंत ब्राह्मणों की महिमा बताई गई व दान पुण्य को ही सब कुछ साबित करने की चेष्ठ की गई | भगवान् राम , भगवान् शंकर व भगवान् कृष्ण के चरित्रों को भी धूमिल करने की चेष्टा की गई है | जिसका परिणाम यह हुआ की लोग तपस्या के मार्ग से अलग होकर अधर्म - पूर्वक अर्थोपार्जन कर , दान द्वारा मोक्ष की कल्पना करने लगे | जिसके फलस्वरूप समाज चरित्र का निरंतर पतन होता चला गया |

उपरोक्त धार्मिक पाखंड के प्रपंच में क्षत्रिय व अन्य जातीय शिक्षा से विमुख हो गई व संस्कृत शिक्षा पर पंडो ने एकाधिकार कर लिया | ये लोग निकृष्ट तांत्रिक कर्मकांडो का आश्रय लेकर जनता का शोषण करने लगे | क्षत्रिय संस्कृत भाषा के ज्ञान के अभाव में अपने पैतृक ज्ञान से दूर हटकर दान को ही सब कुछ समझने लगे तथा ताप व ज्ञान की महिमा को भूल गए | उन्हें यह भी ज्ञात नहीं रहा कि धर्म के नाम पर कितने व किस प्रकार के पाखंड पूर्ण ग्रंथो कि रचना कि जा चुकी है | धर्म ग्रंथो व ब्राह्मणों कि निन्दा करने वाले को नरक में जाने का भय बताकर उन्हें धर्म भीरु व पंगु बना दिया गया |

क्षत्रिय यह भूल गए है कि उनके पूर्वज राजा इश्वाकू ने स्वयं जप करके या जापक ब्राह्मण के जप के प्रभाव से भगवान् के धाम को प्राप्त किया था | उनको यह भी पता नहीं रहा कि उनके वंश में राजा उपरिचर जैसे लोग हुए जिनके ज्ञान में स्वयं भगवान् ने उपस्थित होकर अपना भाग ग्रहण किया था | उनको इस बात का भी बोध नहीं रहा कि राजा पृथु को दंड का अधिकार देकर स्वयं ब्रम्हाजी ने उसको पृथ्वी का राजा बनाया व उसी के नाम से इस धरती का नाम पृथ्वी पड़ा | वे यह भी भूल गए कि राजा ऋषभ देव , आज के जैन जिनको अपना प्रथम तीर्थकर मानते है , ने यह घोषणा की थी कि जिसको हम 'यह मेरा है' कहकर सम्बोधित करते है , वास्तव में 'मै' तत्व उससे भिन्न है |हम आज यह भी नहीं जानते कि राजा रतिन्देव ने चंडाल व उसके कुत्ते को जल पिलाकर , जब उनके प्राणों को तुष्ट होते हुए देखा तो यह घोषणा कि थी कि सारे प्राणियों में प्राण तत्व एक है व इसी तत्व को जान लेने से वे हमेशा के लिए भूख व प्यास से मुक्त हो गए | महात्मा गौतमबुद्ध ने कहा था कि ध्यानपूर्वक जिओ अपनी क्रियाओं पर सतत ध्यान रखने से सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है |उन्होंने अपने सैकड़ों जन्म का वर्णन किया है | राजा धृतराष्ट्र ने भी यह कहा था कि मुझे अपने सौ जन्मो का हाल मालुम है | जिन लोगो ने अपने हृदय स्थित प्राण से संसर्ग स्थापित कर लिया , उनके लिए इस कार्य को दुर्लभ नहीं किया जा सकता | आधुनिक इतिहास में भी सिर काटने के बाद मीलों तक योद्ध करते हुए चले जाने कि घटनाओं का वर्णन मिलता है | परम्परा से प्राप्त हृदय गत साधना के कारण ही इस तत्व को क्षत्रिय प्राप्त कर सके थे |

क्षत्रिय शब्द ब्रम्ह का उपासक रहा है | अर्थात बीज रूप में जो तत्व है| उसको वह प्राप्त करता है , किन्तु उसका विश्लेषण नहीं करता , विश्लेषण के आकर्षण में फंसने से प्राणशक्ति क्षीण होती है , जिसका क्षय होने के बाद राज धर्म का पालन नहीं किया जा सकता | अतः इसके विस्तार का वर्णन करना ब्राह्मणों का कार्य था , जिन्होंने पथभ्रष्ट होकर धर्म को रोजी रोटी का साधन बना लिया , तो इसमें क्षत्रियों का क्या दोष है ?

इस प्रकार से स्पष्ट है कि संस्कृत भाषा के ज्ञान के अभाव में हम क्षात्र धर्म के तत्व से पृथक होते चले गए व अब भी अबाध गति से उसी और आगे बढे जा रहे है | विश्वामित्र जी जब वसिष्ठ जी से पराजित हुए , तो उन्हें अपनी अपनी कमियों का अनुभव करने में केवल कुछ ही क्षण लगे | उन्होंने कहा - धिक्कार है इस क्षात्र धर्म को , ब्रम्ह बल ही वास्तविक बल है | "अर्थात जिस क्षत्रिय में तपस्या का बल नहीं रहा , उसको यहीं शासन मिल जाए तो ऐसे शासन को भोगना दिक्कर योग्य है | भगवान् राम ने भी अनेक स्थलों पर ऐसे क्षात्र धर्म कि निंदा कि है , जो धर्म पर आरूढ़ नहीं है | अतः विश्वामित्र जी ने घोर तपस्या कर दिव्य शक्तियों को प्राप्त किया व उन्हें अपने शिष्य राम लक्ष्मण को प्रदान कर , उस समय के अहंकारी शासक रावण का नाश करवाया | परशुराम जी के दर्प को खंडित किया | इस प्रकार हम देखते है कि संसार के सर्वश्रेष्ठ ज्ञान के तत्व का आविष्कार व सर्व श्रेष्ठ चरित्र कोधारण करने वाले क्षत्रिय रहे है | बिना तपस्या के कभी भी कोई कुछ प्राप्त नहीं कर सकता | महाभारत के विजेता अर्जुन को भी श्री कृष्ण ने बनवास काल में घोर तपस्या में लगाया , जिसके परिणाम स्वरूप वह उन यथोचित आवश्यक शक्तियों को प्राप्त कर सका , जो विजय के लिए आवश्यक थी

केवल पुरुषों में ही नहीं क्षत्राणियों में भी तपस्या किसी से कम नहीं रही | आज देश में जितनी भी पवित्र सतियाँ है , वे सब क्षत्रिय कन्याओं कि तपस्या कि प्रतीक है | सबसे पवित्र गंगा राजा हिमवान की पुत्री थी | जमना सूर्य की पुत्री है | सरस्वती महाराज गाधी की पुत्री व विश्वामित्र की बड़ी बहन है | नर्मदा इसीलिए पूज्यनीय है कि उसके तट पर बैठकर हिमवान कि पुत्री पार्वती जी ने शंकर भगवान् को वर में प्राप्त करने के लिए भीषण तपस्या कि थी | ओमवती राजा सुदर्शन की प्रतिवार्ता स्त्री थी जिन्होंने अतिथि धर्म का पालन करते हुए श्रेष्ठ गति को प्राप्त किया |
संस्कृत भाषा के अभाव में इन सब इतिहासों या तत्वों से विस्मृत होकर क्षत्रिय पंडावादी पाखंड में फंस कर अपने व समाज का शत्रु बन बैठा | आज हम जो कुछ उपलब्ध , अनुवादित ग्रंथो को पढ़कर किसी नतीजे पर पहुंचना चाहते है | वह फलदायक सिद्ध नहीं हो सकता क्योंकि लेखक सत्य को प्रगत करने की क्षमता नहीं रखता | भाषा व अभिव्यक्ति की अपूरणता के कारण सत्य शब्दों के इर्द गिर्द छिपा रहता है
जिसको अनुवादक नहीं पकड़ सकते | अतः यदि हम प्राचीन धर्म ग्रन्थों के तत्वों को समझने की अभिलाषा रखते है | तो हमे संस्कृत भाषा सीखने की और ध्यान देना पड़ेगा |
लेखक : श्री देवीसिंह महार
क्षत्रिय चिन्तक


श्री देवीसिंह जी महार एक क्षत्रिय चिन्तक व संगठनकर्ता है आप पूर्व में पुलिस अधिकारी रह चुकें है क्षत्रियों के पतन के कारणों पर आपने गहन चिंतन किया है यहाँ प्रस्तुत है आपके द्वारा किया गया आत्म-चिंतन व क्षत्रियों द्वारा की गयी उन भूलों का जिक्र जिनके चलते क्षत्रियों का पतन हुआ | इस चिंतन और उन भूलों के बारे में क्यों चर्चा की जाय इसका उत्तर भी आपके द्वारा लिखी गयी इस श्रंखला में ही आपको मिलेगा |

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