राजकुल पत्रिका के जून के अंक में प्रकाशित
आज कुँवर अवधेश अंगार लिखेगा दिल थामकर पढना,
अगर खुन खोले रजपूती जागे तो प्रण करना ।
ना दहेज लेना ना मृत्युभोज में जाना ।।
क्या शाही दावते खत्म हो गई जो तू मृत्युभोज खाने चला,
क्या ब्राह्मण व शुद्र कम पङ गये जो यह कृत्य राजपूत करने चला ।
क्या आज दानवीर भिखारी बन गया जो दहेज मांगने चला,
क्या आज तेरी क्षत्रियता मर गई जो स्वाभीमान बेचने चला ।।
तुझे भी तो भगवान ने देवी समान बहन या भुआ दी होगी,
तेरे पिता ने भी तो उसकी शादी कर्ज लेकर ही की होगी ।
तो फिर क्यों तू एक और राजपूत परिवार को कर्ज तले दबाने चला ।।
धिक्कार है तेरे राजपूत होने पर !
धिक्कार है तेरे क्षत्रिय कहलाने पर !
जो तू देवी समान राजपूत कन्या कि बजाय,
उसके पिता से मिलने वाली दहेज की राशि से विवाह करने चला ।।
यदि अब भी तूने प्रण ना किया,
तो धिक्कार है उस क्षत्राणी को जिसने तुझे जन्म दिया ।।
written by कुँवर अवधेश शेखावत (धमोरा)
नोट:- यहाँ ब्राह्मण व शुद्र शब्द से आशय किसी जाती विशेष से नहीं है । यहां पर्युक्त ब्राह्मण शब्द का आशय एक उस पवित्र वर्ग से है जिन्हें भोजन कराना हिन्दू धर्म में पुण्य का कार्य माना जाता है व शुद्र शब्द से आशय उन लोगों से हैं जिनकी प्राथमिक आवश्यकताएं (रोटी,कपड़ा,मकान) भी पूर्ण नहीं हो पाती है ।।