वर्ष 1997 में अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा द्वारा दिल्ली के लालकिले पर एक राष्ट्रीय सभा का आयोजन किया गया था। आयोजन से जुड़े लोग बताते है कि उस सभा में देशभर से कोई पांच लाख क्षत्रिय एकत्र हुए थे। यदि यह संख्या अतिश्योक्तिपूर्ण भी मानी जाय, तो भी यह तो तय है कि पांच लाख ना सही, पर लाखों क्षत्रिय उस विशाल सभा में एकत्र हुए थे और जो क्षत्रिय राजनेता पहले उस कार्यक्रम से दूरी बनाये हुए थे, वे संख्या की खबर पाकर बिना बुलाये दौड़े चले आये थे। उस आयोजन से जुड़े ठाकुर प्रतापसिंह जी मेघसर बताते है कि सभा के दूसरे दिन अखबारों में छपा कि पहली बार राजधानी में इतनी भीड़ आने के बावजूद किसी तरह का उत्पात तो दूर किसी ठेले वाले का एक समोसा तक भीड़ ने नहीं लूटा जो आश्चर्यजनक है। ऐसा अनुशासन क्षत्रियों के अलावा किसी समुदाय में नहीं देखा गया। ठा. प्रतापसिंह जी आगे बताते है कि अखबारों ने क्षत्रिय समाज के अनुशासन की भूरी भूरी प्रशंसा की थी।
ठीक इसी तरह राजस्थान के राजपूतों ने जागीरदारी उन्मूलन कानून के खिलाफ आजतक का सबसे बड़ा आन्दोलन ‘‘भूस्वामी आन्दोलन’’ किया था। जिसमें राजस्थान की जेलें भर दी गई थी। पर आन्दोलन में अनुशासन ऐसा था कि देश के किसी नागरिक को कोई दिक्कत नहीं हुई, ना ही किसी सरकारी संपती को नुकसान पहुँचाया गया और इस अनुशासित आन्दोलन के आगे सरकार को झुकना पड़ा। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने राजपूत समाज के लिए ‘‘नेहरु अवार्ड’’ घोषित कर समझौता किया।
वर्तमान में महाराष्ट्र के मराठा आरक्षण आन्दोलन ने अनुशासन की मिशाल पेश की है कि चाहे कितने ही लाख की भीड़ एकत्र हो जाये, अनुशासन बनाये रखकर सरकार को अपनी ताकत दिखाई जा सकती है। मुंबई में हाल ही अनुशासित मराठा रैलियां आन्दोलनकारियों के लिए प्रेरणास्त्रोत है।
पर सदियों से अनुशासन में रहे क्षत्रिय समाज की नई पीढ़ी अनुशासन खो रही है। जयपुर में आरक्षण के लिए विधानसभा का घेराव हो या आनन्दपाल एनकाउन्टर प्रकरण में रावणा राजपूत (ओबीसी) के समर्थन में राजपूत समाज द्वारा किये आन्दोलन में हिंसक घटनाये हुई है, जो साबित करती है कि हमारी नई पीढ़ी में सहनशीलता की कमी बढ़ रही है और राजपूत युवा बात बात में असहिष्णु होकर हिंसा की तरफ अग्रसर हो रहे है। हो सकता है इस कारण के पीछे वर्तमान राजनैतिक परिस्थितियां व राजपूतों के प्रतिकूल सरकारी नीतियों के खिलाफ असंतोष जिम्मेदार हों, पर यह समाज व देश के लिए चिंता का विषय है कि जो हाथ हमेशा देश की रक्षा के लिए उठते रहे है वे देश की सम्पदा की तोड़फोड़ के लिए उठने लगे है।
इस समस्या पर काबू पाने के लिए जहाँ सामाजिक संगठनों व अपने बच्चों में संस्कार निर्माण हेतु अभिभावकों को ठोस प्रयास करने होंगे, वहीं सरकार को भी देश हित में क्षत्रिय युवाओं में पनप रहे आक्रोस के कारणों को समझकर उनका निराकरण करना होगा। यही समय की मांग है।
ठीक इसी तरह राजस्थान के राजपूतों ने जागीरदारी उन्मूलन कानून के खिलाफ आजतक का सबसे बड़ा आन्दोलन ‘‘भूस्वामी आन्दोलन’’ किया था। जिसमें राजस्थान की जेलें भर दी गई थी। पर आन्दोलन में अनुशासन ऐसा था कि देश के किसी नागरिक को कोई दिक्कत नहीं हुई, ना ही किसी सरकारी संपती को नुकसान पहुँचाया गया और इस अनुशासित आन्दोलन के आगे सरकार को झुकना पड़ा। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने राजपूत समाज के लिए ‘‘नेहरु अवार्ड’’ घोषित कर समझौता किया।
वर्तमान में महाराष्ट्र के मराठा आरक्षण आन्दोलन ने अनुशासन की मिशाल पेश की है कि चाहे कितने ही लाख की भीड़ एकत्र हो जाये, अनुशासन बनाये रखकर सरकार को अपनी ताकत दिखाई जा सकती है। मुंबई में हाल ही अनुशासित मराठा रैलियां आन्दोलनकारियों के लिए प्रेरणास्त्रोत है।
पर सदियों से अनुशासन में रहे क्षत्रिय समाज की नई पीढ़ी अनुशासन खो रही है। जयपुर में आरक्षण के लिए विधानसभा का घेराव हो या आनन्दपाल एनकाउन्टर प्रकरण में रावणा राजपूत (ओबीसी) के समर्थन में राजपूत समाज द्वारा किये आन्दोलन में हिंसक घटनाये हुई है, जो साबित करती है कि हमारी नई पीढ़ी में सहनशीलता की कमी बढ़ रही है और राजपूत युवा बात बात में असहिष्णु होकर हिंसा की तरफ अग्रसर हो रहे है। हो सकता है इस कारण के पीछे वर्तमान राजनैतिक परिस्थितियां व राजपूतों के प्रतिकूल सरकारी नीतियों के खिलाफ असंतोष जिम्मेदार हों, पर यह समाज व देश के लिए चिंता का विषय है कि जो हाथ हमेशा देश की रक्षा के लिए उठते रहे है वे देश की सम्पदा की तोड़फोड़ के लिए उठने लगे है।
इस समस्या पर काबू पाने के लिए जहाँ सामाजिक संगठनों व अपने बच्चों में संस्कार निर्माण हेतु अभिभावकों को ठोस प्रयास करने होंगे, वहीं सरकार को भी देश हित में क्षत्रिय युवाओं में पनप रहे आक्रोस के कारणों को समझकर उनका निराकरण करना होगा। यही समय की मांग है।