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Jun 19, 2011

हमारी भूलें : अपने आपको विधर्मी स्वीकार कर लेना

महाभारत काल के पूर्व के धार्मिक ग्रन्थों को देखने से ज्ञात होता है की पहले धर्म शब्द का की प्रयोग हुआ है उसके आगे हिन्दू , बौद्ध , जैन , मुस्लिम व ईसाई जैसे नाम वर्णित नहीं है | इससे स्पष्ट होता है कि संसार के सभी धर्मों का उदय महाभारत के बाद ही हुआ है |
क्षत्रियों में कभी भी धार्मिक या एतिहासिक ग्रन्थों कि रचना करने कि प्रवर्ती नहीं थी और उन्होंने अपने शासन काल में कभी भी इस प्रकार कि रचनाओं को प्रोत्साहित नहीं किया , इसी का परिणाम था कि प्राचीनकाल में लिखित धर्म शास्त्र या इतिहास नहीं था | लोग धर्म व इतिहास कि बातें सुनने के लिए संत वृति वाले वृद्ध लोगों के पास जाया करते थे |

महाभरत के भीषण युद्ध में जब पराक्रमी व विद्वान क्षत्रियों का सर्वनाश सा ही हो गया | तो अवसरवादी लोगों ने मनगढंत तरीको से इतिहास व धार्मिक ग्रन्थों कि रचना प्रारंभ करदी | क्षत्रियों कि शक्ति क्षीण होने के साथ ही शुद्ध ब्राम्हण तत्व सुरक्षा के प्रभाव में लुप्त होता चला गया व अवसरवादी पंडा तत्व का प्रादुर्भाव हुआ , जिन्होंने धर्म व इतिहास के नाम पर पुराणों कि रचना कर अपने आपको संसार का सर्वपूज्य व सर्वश्रेष्ट व्यक्ति साबित करने कि चेष्टा कि | महाभारत जैसे ग्रन्थ में भी इन लोगों ने , स्थान स्थान पर मंत्र गढ़ंत प्रसंग जोड़कर उसको विकृत करने की चेष्टा की व वाल्मीकि रामायण जैसे पवित्र ग्रंथो में उल्लेखित कथाओं को असत्य साबित करने के लिए पुराणों में मन गढ़ंत एतिहासिक प्रसंग लिखकर सारे देश व धर्म के इतिहास को दूषित कर दिया |
आज हम व हमारी आने वाली पीढियां जिस इतिहास को पढ़ रही है व सम्पूर्ण इतिहास हमारे वर्ग शत्रुओं , इन पंडो , आक्रान्ता मुसलमानों व ईसाईयों द्वारा लिखा गया है , जिनका उद्देश्य सर्वदा ही यह रहा है की वे हमे अयोग्य , अदूरदर्शी व बुद्धिहीन साबित करे | इन इतिहासों को पढ़कर यदि हम अपनी भूलों का विश्लेषण करना चाहेंगे तो यह भी एक भूल ही साबित होगी इसलिए हम अपने विश्लेषण में इन आधुनिक इतिहास के तथ्यों से दूर रहकर अपना विवेचन करना चाहेंगे |

क्योंकि ऊपर पंडा शब्द का प्रयोग हो चूका है इस शब्द की व्याख्या कर देना आवश्यक होगा | जो व्यक्ति अपनी बुद्धि का उपयोग अपने व्यक्तिगत हित साधन के लिए करता है , उसे ही पंडा कहा गया है| इस बात को दूसरे शब्दों में यों भी कहा जा सकता है कि पंडा वह हे जिसने अपनी बुद्धि को व्यवसाय का साधन बना लिया है | तथा व्यावसायिक बुद्धि वह है जो केवल एक दिशा में चलती है और वह केवल अपने ही लाभ के बारे में सोचती है | प्राचीन काल का ब्राह्मण ब्रह्म का उपासक था | परब्रह्म अर्थात ब्रह्मतत्व के विस्तार कि हर दिशा को उसने खोज निकाला था | उसकी बुद्धि व्यावसायिक नहीं थी | वह तत्व का अन्वेषक था | तत्व को खोजता था | वह उसी में प्रतिष्ठित रहता था | पूछने पर सद्पात्र को वह अपना अनुभव बताता था | इसलिए उस तत्वेता को लोग पूजते थे | लेकिन आज का पथभ्रष्ट पंडा अपने आप को उन श्रेष्ठ पुरुषों से जोड़कर कुचक्र रचकर , यदि समाज को दिशा भ्रमित करने कि चेष्टा कर रहा है तो देश व समाज के हर श्रेष्ठ व्यक्ति का उत्तरदायित्व है कि वह उसके षड्यंत्रों को पर्दाफास करे व समाज को कायरता से मुक्त करे |

महाभारत कालीन के संसार के अनेक श्रेष्ठ लोगों ने इस पंडावाद के विरुद्ध जेहाद किया है | महाभारत में केवल राम और कृष्ण दो को अवतार बताया गया है | किन्तु इन पंडों ने अपने पुराणों में अवतारों कि संख्या बढाकर २४ कर दी | बढ़ाकर शब्द का प्रयोग यहाँ पर इसलिए किया गया हे कि विभिन्न पुराणों में अवतारों कि संख्या भिन्न भिन्न दी गई है | अंतिम पुराण भागवत में इनकी संख्या चौबीस कर दी है | जिनका उद्देश्य केवल यह था कि कुछ ब्राह्मणों को अवतारों कि श्रेणी में लाकर उनकी श्रेष्टता प्रतिपादित कि जावे | इस प्रकार के घिनोने प्रयास जब लोगों के लिए असहाय हो गए तो उन्होंने पंडावाद के विरुद्ध जेहाद प्रारम्भ किया | महात्मा गौतम व महावीर स्वामी आदि इस पंडावाद के विरुद्ध बिगुल बजाने वालों में अग्रणी थे | केवल बोद्ध या जैन धर्म ही पंडावाद के विरोध में बने हो ऐसी बात नहीं है | यह भी सिद्ध किया जा सकता है कि इस्लाम व इसाई धर्मों कि स्थापना भी पंडावाद के विरोध के कारण ही हुई है |

जिन लोगों ने इस पुराणपंथी पंडावाद का विरोध किया , उनको पंडो ने विधर्मी घोषित कर दिया | विद्रोही जिनमे अधिकांश क्षत्रिय थे उनकी भूल यह रही है कि उन्होंने अपने आपको विधर्मी स्वीकार कर लिया | इस प्रकार विद्रोहियों के अग्रणी नेताओ के नाम से नए धर्मो का उदय होता चला गया | इस भूल के दो दुष्परिणाम सबसे भयानक हुए | पहला यह कि पंडावाद कि विरोधी पंक्तियाँ विभाजित हो गई , तथा दूसरा परिणाम जो इस से भी बयानक था वह यह हुआ कि नए धर्म करोडों वर्ष कि अपने पूर्वजों कि संचत ज्ञान शक्ति से पृथक हो गया | एक व्यक्ति द्वारा साधित एक साधना पद्दति को सम्पूर्ण रूप से धर्म स्वीकार कर लिया व इस प्रकार पूर्वजो द्वारा आविष्कृत अनन्य मार्गो व धाराओं से वे पृथक हो गए | जिसके परिणाम स्वरूप समय बीतने पर यह धर्म स्वयं पंडावाद से ग्रसित होकर जीवन की संजीवनी शक्ति भी खो बैठे |

इस प्रकार निरंतर विखंडित व क्षीण होते हुए धर्म को देखकर भारत के संतो ने एक नई शुरुआत की | पंडावादी ग्रन्थ पुराणों की उपेक्षा कर उन्होंने सरल अ आम जनता की भाषा में अपने उपदेश प्रारंभ किये व संत तत्व की महिमा का बखान करते हुए उनसे ही मार्गदर्शन समाज प्राप्त करे,एसा अनुरोध किया | इसका समाज पर व्यापक असर हुआ |
गोरखनाथ व मछन्दरनाथ द्वारा प्रारंभ की गयी इस संत परम्परा को नानक,कबीर व दादूदयाल जैसे संतो ने इस प्रकार आगे बढाया कि पंडावाद का झमेला लोगों की आँखों से ओझल हो गया | इस तरह नए धर्मों का उदय होना समाप्त हुआ ,लेकिन नए पंथों का गुरुओं के नाम पर निर्माण चालु हो गया |

इस भूल को स्वीकार करते हुए हमें विषाक्त इतिहास का विरोध करते समय इतना कहर नहीं होना चाहिए कि हम सम्पूर्ण धर्म से ही अपने आपको अलग करलें बल्कि आज की आवश्यकता यह है कि सम्पूर्ण धर्मों का मूलधर्म से उदय हुआ समझ कर उनकी अच्छाइयों को ग्रहण किया जावे व उनसे जीवनदायिनी नई ज्ञान धाराओं को प्राप्त कर पुन: जोड़ा जाय तथा पुरातन बुराइयों से अपने आपको मुक्त कर रूढीग्रस्तता से छुटकारा पाया जाये | नए धर्मों व पन्थो की सृष्टि न तो आवश्यक थी और न आवश्यक है | सारे संसार का सत्य एक है | वह पूजनीय व उपासनीय है,उसकी उपासना की जनि चाहिए |
क्रमश :
लेखक : श्री देवीसिंह महार
क्षत्रिय चिन्तक


श्री देवीसिंह जी महार एक क्षत्रिय चिन्तक व संगठनकर्ता है आप पूर्व में पुलिस अधिकारी रह चुकें है क्षत्रियों के पतन के कारणों पर आपने गहन चिंतन किया है यहाँ प्रस्तुत है आपके द्वारा किया गया आत्म-चिंतन व क्षत्रियों द्वारा की गयी उन भूलों का जिक्र जिनके चलते क्षत्रियों का पतन हुआ | इस चिंतन और उन भूलों के बारे में क्यों चर्चा की जाय इसका उत्तर भी आपके द्वारा लिखी गयी इस श्रंखला में ही आपको मिलेगा |

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