समाज के अधिकांश लोग आज समाज के संघठन कि बात करते है व अपनी कार्य शैली को इस कार्य के निमित्त लगा देने का दावा करते है | ऐसे लोगों के होते हुए भी आज समाज में कोई भी संघठन न तो वास्तविक रूप में संघठित ही है , और न ही गतिशील ही है | सभी संघठनो के लोग निराशा के गहरे गर्तों में गोते लगाते दिखाई दे रहे है व इसके लिए वे एक दुसरे को दोषी ठहरा रहे है | इस सब के पीछे कारण क्या है ? कारण स्पष्ट है लोग बिना अपने आपको बदले समाज को बदलना चाहते है | लोग बिना कष्ट उठाये सुख भोगने कि कल्पना में डूबे हुए है | शारीरिक कर्म से मानसिक कर्म अधिक कष्ट दायक व दुष्कर है | लोगों को जब विचार चिंतन , व मनन , कि बात कही जाती है तो उसका उत्तर होता है कार्यकर्ता को कार्य चाहिए , विचार करना नेताओं का धर्म है | ऐसे लोगों को विचार के लिए तैयार करना एक कठिन कार्य है , जिसमे फंसे बिना लोग संघठन के कार्य में जुट पड़ते है व समय व्यतीत होने पर देखते है कि उनके कार्यकर्ताओं का उत्साह भंग हो चूका है |
कार्य में आरम्भ से लेकर अंत तक एकरूपता व सामान रस बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि कार्यकर्ताओं में उत्साह निरंतर बना रहे | भावनाओं को उभार कर या परिस्थितियों का भय दिखाकर समय विशेष पर लोगों को उत्साहित कर कार्य को सिद्ध किया जा सकता है , किन्तु जीवन पर्यन्त साधना के लिए , यह पर्याप्त सिद्ध नही हो सकते | क्योंकि कामनाओ को आघात पंहुचाते ही उत्साह के स्थान पर शोक उपस्थित होता है | परिणामतः लोग एक दूसरे में दोष दृष्टि की स्थापना कर कर्म विमुख होने लगते है |
अतः आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है विचार क्रान्ति | सारे समाज को विचारशील बनाकर उसको आगे बढाने के लिए तैयार करना पड़ेगा | विचार व कर्म के सामंजस्य से उत्पन्न होने वाले नवीन अनुभव ही कार्यकर्ता के लिए संजीवनी शक्ति का कार्य कर सकते है | इस क्रम के चालु रहने पर लोगों की निरंतर नवीन प्रेरणा का सहारा मिलता रहेगा | जिससे उनका उत्साह कभी भंग नहीं होगा | अतः यहीं से हम आत्म चिंतन के अध्याय को आरम्भ करते है | पहले हम हमारी भूलों को देखने व समझने का प्रयास करेंगे | उसके बाद उस संजीवनी शक्ति की खोज करेंगे , जिसको प्राप्त कर हमारे पूर्वजों ने अमरत्व व अक्षय यश प्राप्त किया था | यही होगा हमारी विचार क्रान्ति का पहला चरण |
क्रमश :
क्षत्रिय चिन्तक
श्री देवीसिंह जी महार एक क्षत्रिय चिन्तक व संगठनकर्ता है आप पूर्व में पुलिस अधिकारी रह चुकें है क्षत्रियों के पतन के कारणों पर आपने गहन चिंतन किया है यहाँ प्रस्तुत है आपके द्वारा किया गया आत्म-चिंतन व क्षत्रियों द्वारा की गयी उन भूलों का जिक्र जिनके चलते क्षत्रियों का पतन हुआ | इस चिंतन और उन भूलों के बारे में क्यों चर्चा की जाय इसका उत्तर भी आपके द्वारा लिखी गयी इस श्रंखला में ही आपको मिलेगा |