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Sep 4, 2010

राजनैतिक दल और क्षत्रिय

यूँ तो जिस निति से राज चलाया जाता है उसे राजनीति कहा जाता है |किन्तु शायद जितना बदनाम यह शब्द हुआ उतना शायद ही अन्य कोई शब्द बदनाम हुआ हो|आज मानवीय चरित्र की जतनी भी बुराईयां किसी एक व्यक्ति में हो तो उसे एक अच्छा और बड़ा राजनीतक बनाने की दिशा में उतनी ही सफलता मणि जाती है |आधुनिक भारत के विभाजन और अंग्रेजो के जाने से लेकर आज तक ऐसा कोई राजनीतिज्ञ नहीं हुआ जिसने राजनीति को कोई सम्मान जनक स्थान दिलाया हो |महात्मा गाँधी और शास्त्री जी ने इस दिशा में थोडा प्रयास किया था किन्तु महात्मा गाँधी की अहिंसा की नई परिभाषा एवं अतिवादी दृष्टिकोण उनके सच्चे अनुयायी पैदा करने में सफल नहीं हुए | और शास्त्री जी ३२ दांतों के बीच जीभ साबित हुए |किन्तु ये ऐसे राजनीतिज्ञ थे की इनके अपने पुत्र और पोत्रो ने भी इनका अनुगमन न करके इनके रश्ते को अव्यवहारिक साबित कर दिया |राजनितिक पटल पर नई अव्धार्नाओ ने जन्म लिया ,राष्ट्र-वाद और पंथ-वाद कालांतर में प्रांतीयता,भाषावाद,और जाती-वाद की अवधारनाये पनप गयी |साम्य-वाद के नाम पर ,समाज-वाद के नाम पर ,राष्ट्र-वाद और पंथ-वाद के नाम पर राजनैतिक दलों का निर्माण हुआ |इन वादों के नाम पर लुभावने नारे सब्जबाग दिखने का ढोंग हुआ |राष्ट्र को धर्म के नाम पर बनता गया |अपने निहित स्वार्थ वश जनता को भरमाया गया ,आजादी के नाम पर लोगो को ऐसा सब्जबाग दिखया की जनता मंत्र-मुग्द सी एक कठपुतली की तरह राजनेताओ को अपना भग्य-विधाता समझ उनके इशारो पर नृत्य करती रही |तत्कालीन क्षत्रिय-समाज अपने आपको साडी जिम्मेदारियों से निवृत समझ मूक-दर्शक बना रहा |फिर लुभावने राष्ट्र-वादी नरो के रोग से न बचकर कांग्रेस धर्म के नाम और अपने ही पूर्वजो के नाम को राजनितिक सीढ़ी बना रही जन संघ एवं भाजपा के चंगुल में भी फंसने से अपने आपको नहीं रोक पाया |धीरे धीरे इन्ही दो पार्टियों में अपना एवं देश का भविष्य खोजने लगा |साम्यवाद की जटिल नास्तिकता ,क्षत्रियो को कभी रास नहीं आयी|हाँ समाज-वाद के शिकंजे में भी जा फंसा |
वर्तमान समय के लगभग सभी राजनैतिक दल एक-एक व्यक्ति की प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी जैसे है और जिनका एक प्रबंध निदेशक है और उसी के इशारो पर पूरी कम्पनी कार्यरत है ,|इन सभी राजनैतिक दलों में दूसरी एवं तीसरी पंक्ति में जन्म से क्षत्रिय राजनेता जा पहुंचे |दरअसल वे होते तो अंतिम पंक्ति में किन्तु चूँकि ये सभी क्षत्रिय-वर्ग से आते है ,तो इन लिमिटेड कंपनियों के प्रबंध-निदेशकों की बनिक सोच ने इन्हें हनी लाभ के तराजू पर तौल कर देखा तो पाया की अपने पीछे कुछ चाटुकार और चोलुश लोगो की आवश्यकता है जो कि पुरे क्षत्रिय-समाज को यह भरमाने के लिए पर्याप्त होगा कि ,हमारे इस राजनीतिक दल में क्षत्रिय किस कदर नंबर ३ एवं ४ कि स्थिति में है |और इन नंबर ३-४ कि स्थिति यह है अपने आपको अपनी योग्यता के आधार पर इस क्रम में मन कर चल रहे है ,जबकि उनका जन्म से क्षत्रिय होना ही उनका यहाँ तक पहुँचने का आधार है|इस प्रकार के क्षत्रिय राजनेताओ ने एक ने भी अपनी पार्टी का प्रबंध निदेशक जैसा बनाने का कोई सपना आज तक नहीं पला है |यह इसी में खुश है कि हमारी मित्रता इन प्रबध निदेशको से या उनके बेटे बेटी से है ,जबकि इनकी मित्रता ऐसी है जैसी कि निषाद-राज और श्री राम कि थी जिसमे एक रजा तो दूसरा सेवक मात्र है |ये लोग चाहते है कि पूरा समाज इनके पीछे चले और ये स्वयं कोई सोनिया के पीछे,कोई कोई अडवाणी के पीछे ,कोई मुलायम के पीछे तो कोई सर्वथा सिद्धांतो से दूर मायावती के पीछे चलने में अपना अहोभाग्य मानते है |पूरे समाज को एक करना चाहते है लेकिन अपने आकाओ के हित-साधन के लिए |सभी राजनितिक दलों ने जम कर दोहन किया है क्षत्रिय-समाज का |जब जिसको जितने निष्ठावान कार्य-कर्ताओ कि जरुरत हुई आगया समाज कि शरण में ,एवं क्षत्रिय-रक्त और भाई होने का अधिकार जताया , काम निबटा,जा पहुंचा हाई कमान के चरणों में |कब तक ऐसा चलेगा ??आखिर समाज कब तक इन चाटुकारों के पीछे अपना भविष्य तलाशता रहेगा ? और यह कब तक आला-कमान का खौफ दिखा कर समाज को दुत्कारते रहेंगे ?? और कब तक इन्हें लुक -छिप कर अपने आपको क्षत्रिय-समाज का अंग बताना होगा,??
जब तक क्षत्रिय-समाज अपनी बिखरी पड़ी सभी जातियों को समझ नहीं जायेगा |जब तक अपने वर्ग शत्रुओ द्वारा क्षत्रिय जातियों में जो भेद की कार-गर निति अपने गयी है ,को समझ नहीं जाता है |जब तक क्षत्रिय-समाज समझ नहीं जाता है कि अपने सभी भाइयो ,जिनमे जाट, गुर्जर,मीना,भील ,अहीर और राजपूतो के अतिरिक्त वे जातिया भी है जो न तो ब्राहमण है,न वैश्य है और न ही शूद्र है तो ,वे क्षत्रियो के अतिरिक्त और क्या हो सकती है ?हमारी इन सभी जातियों को धीरे-धीरे क्षत्रिय संस्कारो से संस्कारित करना होगा |और धर्म के वास्तविक रूप को समझ पंथ-वाद के झमेले से ऊपर उठकर धर्म एवं सत्य पर आधारित धर्म के नेतृत्व वाले राजनैतिक दल कि स्थापना करनी होगी |राजनीति सत्य ,धर्मं ,न्याय एवं मानवीय मूल्यों पर आधारित हो और राजनीति को,जिसे आज पेशा मन लिया गया है,और व्यवसाय का दर्जा है ,से ऊपर उठाना होगा |राजनीति को एक सम्मान जनक स्थिति में लाना होगा |पद-लोलुपता ,स्वार्थ-परकता ,मूल्य-हीनता ,भ्रष्ट-आचरण ,ढोंग चिल्ला-चिल्ला कर,झूंठ को सच्च साबित करने कि प्रचार-व्यवस्था जैसी बुराईयों से राजनीति को आजाद करना होगा |६३ से ६७ % क्षत्रिय-जनता, को२० से २५ % शूद्रों को यह व्यवस्था रास आएगी |स्वस्थ मानसिकता वाले वैश्य एवं ब्राहमण भी यदि सत्य धर्म पर आधारित है, तो इस दल के साथ हो सकेंगे |किन्तु वर्तमान जितने भी राजनीतिज्ञ है चाहे वे ग्रामीण और स्थानीय निकायों के हो या संसद-सदस्य ,वे वर्तमान गन्दी राजनीति के आदी है और वे अपने साथ संक्रामक रोग अवश्य लेकर आयेंगे और इस नए राजनितिक दल एवं कार्य-प्रणाली को संक्रमित करदेंगे |अत: ऐसे लोगो के लिए इस दल के दरवाजे लगभग बंद ही करने होंगे |
इस कार्य में समय थोडा ज्यादा लग सकता है किन्तु इसकी आज सर्वाधिक आवश्यकता है |सभी क्षत्रिय संघठनो एवं प्रबुद्ध क्षत्रिय इस पर विचार कर शीघ्र अति- शीघ्र इस प्रकार के दल के गठन कि प्रक्रिया शुरू करे ,तो यह एक सार्थक प्रयास होगा|
"जय क्षात्र-धर्म "

"कुँवरानी निशा कँवर नरुका "
श्री क्षत्रिय वीर ज्योति


राजऋषि ठाकुर श्री मदनसिंह जी,दांता |
पत्थरी के रोग में बहुत उपयोगी है गोखरू

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