हमारे धर्म के प्रचारक लोग,जिनका धर्म पर एकाधिकार है,यह प्रचारित कर लोगों का मनोबल गिरा रहे है कि अभी कलयुग आरम्भ हुआ है व घोर कलयुग अभी आने वाला है,अतः मनुष्य का नैतिक पतन उत्तरोत्तर होता चला जाएगा| हम इस कथन को यथावत स्वीकार करते हुवे अपने आप को भाग्य भरोसे छोड़ने को उतारू हो जाते है| हम यह भी नहीं जानते कि समय कि गणना का शास्त्र ज्योतिष है,व ज्योतिष की जिस प्रकार गणना होती है उस हिसाब से कलयुग में कलयुग का अंतर व कलयुग का ही प्रत्यंतर जो ४३२० वर्ष का घोर कलयुग का समय था,वह बीत चूका है|
इस घोर कलयुग के समय में संसार में धर्म के नाम से पचाने जाने वाले चरित्र-निर्माण की आधारशिला खंडित हुई| बोद्ध,जैन,इसाई,यहूदी,इस्लाम व सिक्ख आदि धर्मो का उदय हुआ| धर्म खंड खंड हो गया| हम अपने आप को हिन्दू या वैष्णव कहने लगे,यह भी भूल गए कि कलयुग के आगमन से पूर्व,संसार में धर्म केवल धर्म के ही नाम से जाना जाता था| उसके आगे हिन्दू या मुसलमान आदि किसी प्रकार की उपाधि नहीं लगाई जाती थी|
आज जगह जगह दीवारों पर जब हम लिखा देखते है कि सतयुग का आगमन हो रहा है तो हमें पाखण्ड सा नज़र आता है,क्योंकि हम नहीं जानते की पिछले ८०० वर्षों से कलयुग में कलयुग का अंतर तथा उनमे सतयुग का प्रत्यंतर चल रहा है,जो १७,००० से अधिक वर्ष तक चलेगा| इस अवधि में जितने भी धर्मों का उदय हुआ है,उनका नाश होना व पुनः मूल धर्म का उदय होना अवश्यम्भावी है| क्या हम यह कल्पना करते है| की एक रोज हम कलयुग में सोयेंगे व दुसरे रोज जब उठेंगे तो सतयुग हो?ऐसा कभी होने वाला नहीं है क्योंकि कलयुग के बाद सतयुग आता है अतः समाज अभी से मूल धर्म की और अग्रसर होगा व सतयुग के आगमन तक मनुष्य का चरित्र पूरी तरह से विकसित हो चुकेगा,जिस पर किसी भी प्रकार के सामजिक या राजनैतिक नियंत्रण की आवश्यकता नहीं होगी|
पिछले ८०० वषों में क्या हुआ? धर्म के नाम पर युद्ध व एक धर्म के विरूद्ध दुसरे धर्म के युद्ध समाप्त हो गए| सभी धर्मों में ऐसे संतों का प्रादुर्भाव हुआ,जिन्होंने लोगों का ध्यान धार्मिक कट्टरता से हटाकर,मूल धर्म की और खेंचने की चेष्टा की है| ऐसे संतों का साहित्य धार्मिक सीमाओं को लांघ कर आज संसार के सभी भागों में पढ़ा जा रहा है| इस्लाम धर्म के सूफी संत व भारत के भक्ति मार्गी व वेदांती संतों ने संसार में एक ऐसी धूम मचा दी है कि भोतिकतावाद से त्रस्त लोग,आज संतों कि खोज में लगे हुए है| यह दूसरी बात है कि इस परिस्थिति का फायदा उठाकर अनेक ढोंगी साधू जनता के साथ ठगी कर रहे है| लेकिन यह ठगी भी अधिक समय तक चलने वाली नहीं है क्योंकि संतों कि आवाज़ अपने अपने धर्म के पंडावाद के विरुद्ध उठी है| अगर कोई इसी पंडावाद को अपनाने के लिए साधुवेश का उपयोग करेगा,तो वह भी नष्ट हुए बिना नहीं रहेगा|
जहाँ चीन के महान संत लाओत्से व उनकी परम्परा के अनेक संतों ने बोद्धों को धर्म के मूल की खोज के लिए प्रेरित किया,वहीँ पर खलील जिब्रान जैसे संतों ने गिरजाघरों द्वारा किये जाने वाले शोषण को लोगों के सामने प्रस्तुत करते हुए,धर्म की वास्तविकता व सेवा के महत्व को स्वीकार करने के लिए उन्हें प्रेरित किया है|
आज इस्लाम धर्म के अनुयायियों का जिन राष्ट्रों में बाहुल्य है,उनमे हम क्या देख रहे है? इस्लामिक क्रांतियाँ हो रही है| किस लिए? इस्लाम के प्रचार के लिए नहीं, इस्लामिक पंडावाद को बचा लेने के लिए| इस्लाम धर्म को मानने वाले 'बाबा'नामक एक व्यक्ति हुए जिन्होंने यह घोषणा की कि 'रसूल मोहम्मद साहब से यह कहा था कि मेरा चलाया हुआ धर्म एक हजार वर्ष तक चलेगा अतः इससे आगे जो करना है उसका सन्देश लेकर मै आ गया हूँ'| उन्होंने कहा संसार के सभी धर्मों का आदर करो| धर्म के नाम पर लड़ना मनुष्यता नहीं है| विज्ञान को जीवन में अपनाओ| समाज को शिक्षित करो तथा भोतिकवाद व 'आध्यात्मवाद' दोनों का साथ साथ विकास करो|
इन बाबा महाशय का मदीना में क़त्ल कर दिया गया लेकिन अपनी मृत्यु के पूर्व उन्होंने घोषणा की थी कि ४० वर्ष बाद मेरे विचारों का प्रचारक फिर आएगा| तदनुसार इतने ही समय बाद 'अब्दुल बहा' ने उन्ही विचारों को अपनाने की घोषणा कर दी,जिनको 'बाबा' ने प्रगट किया था| अब्दुल बहा को जेल में डाला गया,यातनाएं दी गई,लेकिन अंत में उन्हें रिहा कर दिया गया| परिणामस्वरूप वे अपनी मृत्यु से पूर्व अपने बहुत सारे अनुयायी छोड़ गए जिन्होंने 'बहाई धर्म' की स्थापना कर सब धर्मों को आदर देने की विचारधारा को फैलाने का कार्य अपने हाथ में ले रखा है|इन्ही उदारवादियों से भयभीत होकर इस्लामिक क्रांतियां की जा रही है व उदारवादियों को मौत के घाट उतारा जा रहा है| जेल से छूटने के बाद बहाउल्ला जिस स्थान पर रहे वहां इज़राइल नाम का देश बन गया है जो इस्लामिक देशों को तहस नहस कर रहा है|
मनुष्य यह नहीं जानता कि उसमे काल चक्र को बदलने की क्षमता नहीं है| इसीलिए बुद्धिमान लोग सबसे पहले चारों तरफ दृष्टि फैला कर समय की गति को पहचानने की चेष्टा करते है|
संसार में घटित होने वाली उपरोक्त व ऐसी ही हजारों अन्य घटनाओं को देखते हुए भी हमने अपने आपको नए सिरे से बनाने व युगानुकूल बनने की कभी चेष्टा नहीं की| हमारे सभी शास्त्रों में उल्लेख है कि वर्ण व आश्रम प्रणाली केवल त्रेत्रा व द्वापर युग में स्थापित रहती है| कलयुग में यह नष्ट हो जाति है व सतयुग में इनकी कोई आवश्यकता ही नहीं होती| क्योंकि यह तो जब समाज विकृत होने लगता है,तो उसे पतन से रोकने के साधन मात्र है|
आवश्यकता इस बात की है किसमाज के भौतिक स्वरूप को बनाए रखने के बजाय हमारे धर्म के मूल की खोज की जानी चाहिए क्योकि वास्तविकता तो धर्म का मूल है न कि उसका भौतिक स्वरूप| क्षात्र तत्व की खोज व उसे उपार्जित करना ही युगधर्म है|
क्रमश:...........
क्षत्रिय चिन्तक
श्री देवीसिंह जी महार एक क्षत्रिय चिन्तक व संगठनकर्ता है आप पूर्व में पुलिस अधिकारी रह चुकें है क्षत्रियों के पतन के कारणों पर आपने गहन चिंतन किया है यहाँ प्रस्तुत है आपके द्वारा किया गया आत्म-चिंतन व क्षत्रियों द्वारा की गयी उन भूलों का जिक्र जिनके चलते क्षत्रियों का पतन हुआ | इस चिंतन और उन भूलों के बारे में क्यों चर्चा की जाय इसका उत्तर भी आपके द्वारा लिखी गयी इस श्रंखला में ही आपको मिलेगा |