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Jun 26, 2013

सामाजिक मामलों में क्यों चुप रहते है हमारे समाज के नेता ?

जोधा-अकबर सीरियल में इतिहास को तोड़ मरोड़कर पेश करने को लेकर राजपूत समाज का युवा वर्ग काफी आक्रोशित है, ये युवा वर्ग इस सीरियल पर ही नहीं समाज के उन प्रतिष्ठित व स्थापित नेताओं के इस मुद्दे पर चुप रहने को लेकर भी आक्रोशित है| और उनका यह रोष सोशियल वेब साइट्स पर प्रत्यक्ष देखा जा सकता है| पर समाज के स्थापित नेता इस मुद्दे पर चुप क्यों है इन कारणों की तह में जाने की कोई कोशिश नहीं करता कि आखिर वे कौनसे कारण है जो राजपूत समाज के नेता राजपूत समाज के किसी भी मुद्दे पर चुप्पी साध लेते है ?

इस मुद्दे पर मुझे जो समझ आ रहा है और जोधा-अकबर सीरियल मामले में सोशियल साइट्स पर मैंने जो अनुभव किया उससे मुझे समाज के नेताओं की चुप्पी के कुछ कारण जरुर समझ आये-

1- हम अपने समाज के नेताओं से यह तो उम्मीद करते है कि समाज के हर मुद्दे पर समाज के साथ हों, पर हम किसी भी चुनाव में जातिय आधार पर वोट नहीं देते, यदि वही संबंधित नेता ऐसे दल से चुनाव लड़ रहा है तो हम उसे जातिय आधार पर वोट नहीं देकर अपनी राजनैतिक विचारधारा के अनुरूप वोट देते है तो फिर भला वो नेता आपकी और आपके समाज की परवाह क्यों करे ?

2- हर मामले में राजनीति करने का आरोप – कभी किसी सामाजिक मुद्दे पर यदि कोई नेता आन्दोलन करने को आगे आता है, अपनी और से कोई कार्यवाही करता है तो समाज के ही लोग अपनी अपनी राजनैतिक विचारधाराओं के तहत उसका विरोध करते हुए झटके से उस पर आरोप ठोक देते है कि ये राजनैतिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए हमारी जातिय भावनाओं का दोहन करने आया है|

3- समाज के प्रति समर्पित नेताओं का साथ ना देना – समाज के जो नेता समाज के लिए समर्पित है, जिन्होंने समाज के लिए अपना राजनैतिक कैरियर तक दाँव पर लगा डाला, क्या हमारे समाज ने उन नेताओं का साथ दिया ? समाज के लिए समर्पित नेताओं में से कितने नेताओं को हमने अपने समाज के दम पर लोकसभा व विधानसभा में आजतक भिजवाया ? जबकि राजस्थान में बहुत सी ऐसी सीटें है जो राजपूत बहुल है, पर हम ऐसी जगह बजाय समाज के लिए समर्पित नेता को चुनने के पार्टी लाइन पर चलकर उसे ही चुनते है जिसे अपनी पसंद की कोई पार्टी टिकट दे|

( उदाहरण – लोकेन्द्र सिंह कालवी भाजपा में अच्छी पोजीशन पर थे राजपूत समाज के प्रतिद्वंदी समाज को लिए आरक्षण देने के खिलाफ व राजपूत समाज को आरक्षण में शामिल करने के मुद्दे पर अपने दल से विद्रोह कर अपना राजनैतिक कैरियर दाँव पर लगाया, पर हमने आजतक ऐसी कोई कोशिश तक नहीं की कि किसी राजपूत बहुल सीट से कालवी को लोकसभा या विधानसभा में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर भी पहुंचा देते| उल्टा जब भी वे कोई कार्यक्रम करते है या मुद्दा उठाते है समाज के ही लोग उन पर राजनीति करने का आरोप ठोक डालते है|)

4- आपसी खींचतान (एक दूसरे की टांग खिंचाई)- अक्सर किसी भी मुद्दे पर संघर्ष के दौरान देखने को मिलता है कि किसी भी संघर्ष की अगुवाई करने वाले नेता या कार्यकर्त्ता की समाज के लोग ही अनर्गल आरोप लगाकर टांग खींचने में लगे रहते, जिसके आहत होकर वो नेता या कार्यकर्त्ता मामले से दूर हट चुप्पी साध लेते है| इसका प्रत्यक्ष उदाहरण अभी हाल में चल रहे जोधा-अकबर सीरियल मामले में देखने को मिला|

( जोधा-अकबर मामले में समाज के कुछ युवाओं ने मामला उठाते हुए जी टीवी के खिलाफ IBF में शिकायतें भेजी व दिल्ली स्थित IBF कार्यालय में ज्ञापन दिया और इस मामले की खबर अपडेट करने के लिए ज्ञापन देते समय का फोटो फेसबुक पर लगाया| फेसबुक पर फोटो देखते ही राजपूत समाज के ही कुछ युवाओं ने ज्ञापन देने गये समाज के युवाओं पर आरोप ठोक दिया कि ये तो फोटो खिंचावने के भूखे ज्ञापन देने गये थे|)

(जी टीवी व बालाजी टेलीफिल्म्स के साथ वार्ता पर भी समाज के युवाओं ने समाज की और से भाग लेने गये वार्ताकारों पर सोशियल साइट्स पर जमकर आक्षेप लगाये जैसे- ये लोग अभिनेता जीतेन्द्र के साथ फोटो खिंचवाने की लालशा के लिए गये थे, इन्हें मुद्दे से क्या लेना देना ये तो फाइव स्टार होटल में चाय नाश्ता करने गये थे, जो गये इनमें तो ज्यादा मुर्ख लोग थे, पता नहीं क्या सैटिंग करके आये है?, लगता है इस विरोध की कीमत वसूल लाये, ये तो सिर्फ इसलिए गये थे ताकि इनका इंटरव्यू जी टीवी पर आये और ये फेमस हो जाये आदि आदि ऐसे ना जाने कितने ही आरोप राजपूत समाज के ही युवाओं ने खुद ठोक दिये और नतीजा यह रहा कि जो लोग इस मुद्दे पर गंभीरता से कार्य कर रहे थे उन्होंने चुप्पी साध कर घर बैठना ही उचित समझा|)

5- समझदार नेता या लोग चुप क्यों रहे ?- जोधा-अकबर मामलों में नेता व कुछ समझदार लोगों ने पहले ही चुप्पी साध ली कारण साफ़ है वे समाज के युवाओं की हरकतें पहले से जानते थे अत: उन्होंने चुप रहने में ही बेहतरी समझी|

6- हर एक की अपनी महत्वाकांक्षा – मेरा किसी सामाजिक मुद्दे पर प्रत्यक्ष जुड़ने का यह पहला अनुभव था जोधा अकबर सीरियल मामले पर IBF के कार्यालय में जी टीवी प्रबंधन टीम ने समाज की शिकायत को सुना उसी वक्त पहले से निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार जी टीवी पर प्रदर्शन का कार्यक्रम भी था, जी टीवी के साथ बातचीत होने के बाद उन्हें प्रदर्शन कर एक ज्ञापन देना था, प्रदर्शन के दौरान मैंने समाज के युवाओं का अनुशासन देखा – हर कोई जुलुस में आगे आने के लिए आपस में धक्का मुक्की कर रहा था और इस आगे चलने की होड़ में उन्होंने अपने नेताओं को पीछे धकलने में कोई कसर नहीं छोड़ी| ज्ञापन देने के लिए पांच लोगों को अन्दर जाना था पर जी टीवी के गेट पर अन्दर घुसने की होड़ मची थी हर कोई अन्दर जाने को लालायित था और रोकने के बड़े प्रयासों के बाद भी पांच की दस से ज्यादा व्यक्ति अन्दर घुस गये| यह अनुशासनहीनता नहीं तो फिर क्या है ?

यही कुछ कारण है जिनकी वजह से हमारे समाज के नेता किसी भी सामाजिक मुद्दे पर समाज के साथ नहीं रहते और चाहते हुए भी वे चुप रहते है|
इनके अलावा भी इस मामले में कई अनुभव हुए पर उन पर सार्वजनिक लिखना उचित नहीं|

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